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तत्त्वार्थसारं अर्थ-जो चारित्ररूप परिणामोंको कषे-घाते उसे कषाय कहते हैं। क्रोध, मान, माया और लोभके भेदसे कषाय चार प्रकारकी हैं। ___ भावार्थ-संक्षेपमें कषायके क्रोध, मान, माया और लोभ ये चार भेद हैं परन्तु विशेषताकी अपेक्षा ये चारों कषाय अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण और संज्वलनके भेदसे चार-चार प्रकारको होती हैं ।' जो सम्ययत्वाप परिणामोंका घात करतो है उसे अनन्तानुबन्धी कहते हैं, जो एकदेश चारित्रको न होने दे उसे अप्रत्याख्यानाबरण कहते हैं, जिसके उदयसे सकलचारित्र न हो सके उसे प्रत्याख्यानावरण कहते हैं और जो यथाख्यातचारित्रको प्रकट न होने से उसे संज्वलन नहते हैं । हावाबी कपारका उदय दूसरे गुणस्थान तक, अप्रत्याख्यानावरणका उदय चौथे गुणस्थान तक, प्रत्यारन्यानावरणका उदय पांचवें गुणस्थान तक और संज्वलनका उदय दशवें गुणस्थान तक चलता है। उसके आगे ग्यारहवें गुणस्थानमें कषायोंका उपशम रहता है और बारहवें आदि गुणस्थानों में क्षय रहता है । इन सोलह कषायोंके सिवाय हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, और नपुंसकवेद ये नो नोकषाय भी हैं । हास्य, रति आदिके भाव, क्रोधादिके समान चारित्रगुणका पूर्णघात नहीं कर पाते इसलिये इन्हें नोकषाय-किंचित कषाय कहते हैं। इनका उदय यथासंभव नवम गुणस्थान तक रहता है ।। ८२।।
ज्ञानमार्गणाका वर्णन तत्वार्थस्यावबोधो हि ज्ञानं पञ्चविधं भवेत् ।
मिथ्यात्वपाककलुपमज्ञानं विविधं पुनः ।।८३॥ अर्थ-जीवादि तत्त्वोंका यथार्थ बोध होना ज्ञान कहलाता है । यह मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय और केवलके भेदसे पांच प्रकारका होता है। जो ज्ञान मिथ्यात्वप्रकृतिके उदयसे कलुषित रहता है उसे अज्ञान अथवा मिथ्याशान कहते हैं। इसके मत्यज्ञान, श्रुताशान और विभङ्गके भेदसे तीन भेद होते हैं। इस तरह कुल मिलाकर ज्ञानमार्गणाके आठ भेद हैं ।। ८३ ।।
संयममार्गणाका वर्णन संयमः खलु चारित्रमोहस्योपशमादिभिः । प्राणस्य परिहारः स्यात् पञ्चधा स च वक्ष्यते ।।८४॥
१ पढमादिया कसाया सम्मतं देशसयलचारित्तं ।
जहखावं पादंति य गुणणामा होति सेसा कि ।। ४५ ।।-कर्मकाण्ड सम्मत्तदेससमलचरित्तजहक्खादचरणपरिणामे । धाति वा कसाया घउसोलअसंखलोमिया ।। २८२ १-जीवकाम