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प्रथम अधिकार
द्रानक्षेपका लक्षण भाविनः परिणामस्य यत्प्राप्ति प्रति कस्यचित् ।
स्याद्गृहीताभिमुख्यं हि तव्यं ब्रुवते जिनाः ॥१२॥ अर्थ-किसी द्रव्यको, आगे होनेवाली पर्यायकी अपेक्षा वर्तमानमें ग्रहण करना द्रव्यनिक्षेप हैं, ऐसा जिनेन्द्रदेव कहते हैं ! ___भावार्थ-द्रव्यकी जो पर्याय पहले हो चुकी है अथवा आगे होनेवाली है उसकी अपेक्षा द्रव्यका ग्रहण करना अर्थात् उसे भूतपर्यायरूप अथवा भविष्यत् पर्यायरूप वर्तमानमें ग्रहण करना सो द्रव्यनिक्षेप है 11 १२ ।।
भावनिक्षेपका लक्षण वर्तमानम यत्नेन यायेमोपलक्षितम् ।
द्रव्यं भवति भावं तं वदन्ति जिनपुङ्गवाः ॥१३॥ ___ अर्थ-वर्तमान पर्यायसे उपलक्षित द्रव्यको जिनेन्द्र भगवान् भावनिक्षेप कहते हैं। ___ भावार्थ-जो पदार्थ वर्तमानमें जिस पर्यायरूप है उसे उसी प्रकार कहना भावनिक्षेप है ।। १३ ।।
प्रमाण और नयके द्वारा जीयावि पदार्थोंका बोध होता है
तच्चार्थाः सर्व एवैते सम्यम्बोधप्रसिद्धये ।
प्रमाणेन प्रमीयन्ते नीयन्ते च नयैस्तथा ॥१४॥ अर्थ-सभी तत्त्वार्थ सम्यग्ज्ञानकी प्रसिद्धिके लिये प्रमाणके द्वारा प्रमित होते हैं और मयोंके द्वारा नीत होते हैं अर्थात् प्रमाण और नयोंके द्वारा जाने आने हैं ।। १४ ॥
प्रमाणका लक्षण और उसके भेद सम्यग्ज्ञानात्मकं तत्र प्रमाणमुपर्णितम् ।
तत्परोक्षं भवत्येक प्रत्यक्षमपरं पुनः ।।१५।। अर्थ-उन प्रमाण और नयोंमें प्रमाणको सम्यग्ज्ञानरूप कहा है अर्थात् समीचीनजानको प्रमाण कहते हैं। उसके दो भेद हैं-एक परोक्ष प्रमाण और दूसरा प्रत्यक्षप्रमाण ।
भावार्थ-प्रमीयतेऽनेनेति प्रमाणम्'–जिसके द्वारा जाना जाके उसे प्रमाण कहते हैं, इस व्युत्पत्तिको आधार मानकर कितने ही दर्शनकार इन्द्रियोंको तथा
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