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प्रथम अधिकार परिणमन है । एक द्रव्य अनेक शुद्ध-अशुद्ध पर्यायाका समूह है इसालय द्रव्यार्थिक नय शुद्ध-अशुद्ध दोनों द्रव्योंको ग्रहण करनेवाला कहा गया है । नेगम, संग्रह और व्यबहारके भेदसे इसके तीन भेद हैं ।। ४१ ।। पर्यायाथिकनयके भेद और अर्थनय तथा शब्दनयका विभाग
चतुर्धा पर्यायार्थः स्यादृजुशब्दनयाः परे । उत्तरोत्तरमत्रैषां सूक्ष्मसूक्ष्मार्थभेदता । शब्दः समभिरूढेवंभृतौ ते शब्दभेदगाः ॥४२॥
(षट्पवम् ) चत्वारोऽर्थनया आधास्त्रयः शब्दनयाः परे।
उत्तरोत्तरमत्रैषां सूक्ष्मगोचरता मता ॥४३॥ अर्थ-पर्यायाथिक नयके चार भेद हैं.–१ ऋजुसूत्रनय, २ शब्दनय, ३ समभिरूदनय और ४ एवंभूतनय । इन नयोंमें उत्तरोत्तर अर्थको सूक्ष्मता रहती है। अथवा प्रारम्भके चारनय अर्थनय हैं और आगेके तीन नय शब्दनय हैं । इन नयोंमें भी उत्तरोत्तर विषयकी सूक्ष्मता मानी गई हैं।। ४२-४३ ।।
नैगमनयका लक्षण अर्थसंकल्पमात्रस्य ग्राहको नैगमो नयः ।
प्रस्थौदनादिजस्तस्य विषयः परिकीर्तितः ।।४४॥ अर्थ-जो नय पदार्थके संकल्पमात्रको ग्रहण करता है वह नैगमनय है। जैसे कोई मनुष्य जंगलको जा रहा था, उससे किसीने पूछा कि-जंगल किसलिये जा रहे हो ? उसने उत्तर दिया कि प्रस्थ लाने जा रहा हूँ | प्रस्थ एक परिमाणका नाम है । जंगलमें प्रस्थ नहीं मिलता है। वहाँसे लकड़ी लाकर प्रस्थ बनाया जावेगा, परन्तु जंगल जानेवाला व्यक्ति उत्तर देता है कि---प्रस्थ लानेके लिये जा रहा हूँ । यहाँ प्रस्थके संकल्पमात्रको ग्रहण करनेसे नैगमनयका वह विषय माना गया है । दूसरा दृष्टान्त ओदनका है । कोई मनुष्य लकड़ी, पानी, आगी आदि एकत्रित कर रहा था। उससे किसीने पूछा-क्या कर रहे हो? उत्तर दिया, ओदन अर्थात् भात बना रहा हूँ। यद्यपि उस समय वह भात नहीं बना रहा था, सिर्फ सामग्नी एकत्रित कर रहा था तो भी भातका संकल्प होनेसे उसका वह उत्तर नैगमनयका विषय स्वीकृत किया गया है॥ ४४ ।।
संग्रहनयका लक्षण भेदेनैक्यमुपानीय स्त्रजातरविरोधतः ।
समस्तग्रहणं यस्मात्स नयः संग्रहो मतः ||४५|| १ 'भेदेऽप्यक्य' पाठान्तरम् ।