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द्वितीयाधिकार
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अर्थ - संसारी और मुक्तके भेदसे जीव दो प्रकारके स्मरण किये गये हैं । उनमें मुक्त जीवोंका लक्षण आगे कहा जावेगा । इस समय जीवस्थान, गुणस्थान और मार्गगा आदि में विभाजित संसारी जीवोंका यथार्थ वर्णन किया जाता है ।। १४-१५ ।।
गुणस्थानोंके नाम मिथ्यादृक्सासनो मिश्रोऽसंयतो देशसंयतः । प्रमत्त इतरोऽपूर्वानिवृत्तिकरणौ तथा ।। १६ ।। सूक्ष्मोयशान्त संक्षीणकषाया योग्ययोगिनौ । गुणस्थानविकल्पाः स्युरिति सर्वे चतुर्दश || १७||
अर्थ - मिध्यादृष्टि, सासन - सासादन, मिश्र, असंयत, देशसंयत, प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मकषाय, उपशान्तकषाय क्षीणकषाय, योगी – सयोगकेवली और अयोगी — अयोगकेवली ये सब मिलाकर चौदह गुणस्थानोंके विकल्प है।
भावार्थ — मोह और योग के निमित्तसे होनेवाले आत्माके गुणोंके तारतम्यको गुणस्थान कहते हैं । वे गुणस्थान मिथ्यादृष्टि आदि के भेदसे चौदह होते हैं । इनमें प्रारम्भके बारह गुणस्थान मोहसे सम्बद्ध हैं और अन्तके दो गुणस्थान योगसे ।। १६-१७ ॥
मिथ्यात्व गुणस्थानका स्वरूप
मिथ्यादृष्टिर्भवे जीवो मिथ्यादर्शन कर्मणः । उदयेन पदार्थानामश्रद्धानं हि यत्कृतम् ||१८||
अर्थ —मिथ्यात्वकर्मके उदयसे जिसे जीवादि पदार्थोंका अश्रद्धान रहता है वह मिथ्यादृष्टिजीव होता है ।
भावार्थ - मिथ्यात्वप्रकृतिके उदयसे जहां जीवको मोक्षमार्गके प्रयोजनभूत जीवादि पदार्थों का वास्तविक श्रद्धान नहीं होता वह मिध्यादृष्टि नामका गुणस्थान है || १८ ||
सासन - सासादन गुणस्थानका स्वरूप
मिध्यात्वस्योदयाभावे जीवोऽनन्तानुबन्धिनाम् । उदयेनास्तसम्यक्त्वः स्मृतः सासादनाभिधः || १९|| अर्थ --- मिथ्यात्वप्रकृतिके' उदयका अभाव रहते हुए अनन्तानुबन्धी क्रोष