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द्वितीयाधिकार ४२ भेद होते हैं। उनमें विकलत्रयोंके पर्याप्तक, नित्यपर्याप्तक तथा लब्ध्यपर्याप्तकको अपेक्षा नौ भेद मिलानेसे ५१ भेद होते हैं । इनमें कर्मभूमिज पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोंके ३० और भोगभूमिज पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोंके ४, 'मनुष्योंके ९, "देवोंके २ और चारकियोंके २ भेद मिलानेसे सब ९८ जीवसमास होते हैं ॥ ३०-३१।।
छह पर्याप्तियोंके नाम और उनके स्वामी आहारदेहकरणप्राणापानविभेदतः। वचोमनोविभेदाच्च सन्ति पर्याप्तयो हि षट् ॥३२॥ एकाक्षेपु चतस्रः स्युः पूर्वाः शेषेषु पञ्च ताः।
सर्वा अपि भवन्त्येताः संज्ञिपश्चेन्द्रियेषु तत् ॥३३॥ अर्थ--आहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छ्वास, भाषा और मनके भेदसे पर्याप्तियां छह हैं। इनमें एकेन्द्रियोंके प्रारम्भकी चार, द्वीन्द्रियसे लेकर असंज्ञीपञ्चेन्द्रियों तक प्रारमको पाँध और सजी पश्यन्द्रियोंके सनो र्याप्तियाँ होती हैं।
१ कर्मभूमिज पञ्चेन्द्रिय तिर्यन जलचर, स्थलचर और नभचरके भेदसे तीन प्रकारके है ! इनके संज्ञी और असंज्ञो दो भेद होते हैं। इस तरह छह भेद हुए । ये छह भेद गर्भज तथा संमचाईनके भेद दो प्रकारके होते हैं। गर्भ ज जीवोंके पर्याप्तक और नित्यपर्याप्तकके भेदसे दो भेद होते है तथा संमूर्छन जीवोंके पर्याप्सक, निर्वत्यपर्याप्तक और लमध्यगर्याप्तकके भेदसे तीन भेद होते हैं इस तरह गर्मजोंके बारह
और संमुर्छनोंके अठारह दोनों मिलाकर कर्म भूमिज पञ्चेन्द्रिय तियंञ्चोंके ३० भेद होते हैं।
२ भोगभूमिग तियञ्चोंके स्थलचर और नभचरके भेदसे दो भेद होते हैं। इनके पर्याप्तक और नित्यपर्याप्तककी अपेक्षा चार भेद होते है।
३ आयखण्ड और म्लेच्छखण्डके भेदसे कर्मभूमिज मनुज्यके दो भेद है। इनमें आर्यखण्डज मनुष्य के पर्याप्त क, निर्वृत्यपप्तिक और लक्ष्यपर्याप्तकको अपेक्षा तीन भेद तथा म्लेच्छखण्डज मनुष्यके पयप्तिक और नित्यपप्तिकर भेदसे दो इस तरह पांच भेद होते है । भोगभूमिज और कुभोगभूमिज मनुष्यों के पर्याप्तफ और निवृत्यपर्याप्तकको अपेक्षा दो-दो भेद इस तरह चार भेद मिलाने से मनुष्योंके नौ भेद होते हैं । ___४-५ देव और नारकियोंके पर्याप्तक और निवृस्यपर्याप्तकको अपेक्षा दो-दो भैद होते है।