________________
प्रथम अधिकार
२३ लिये निर्देश आदि छह उपाय प्रयोगमें लाये जाते हैं । यहाँ सम्यग्दर्शनके विषयमें इन छह उपायोंको स्पष्ट किया जाता है ! जैसे
प्रश्न-सम्यग्दर्शनका निर्देश क्या है ? उत्तर-तत्त्वार्थका श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है। प्रवन–सम्यग्दर्शनका स्वामी कौन है ?
उत्तर–सामान्यरूपसे सम्यग्दर्शन संज्ञी पञ्चेन्द्रिय चातुर्गतिक भव्य जोवके होता है। विशेषरूपसे गतिकी अपेक्षा नरकतिमें सभी पृथिवियोंके पर्याप्तक नारकियोंके औपशमिक और क्षायोपशमिक ये दो सम्यग्दर्शन हैं। प्रथम पृथिवीमें पर्याप्तक और अपर्याप्तक दोनोंके क्षायिक और क्षायोपामिक सम्यग्दर्शन होते हैं । तिर्यञ्चतिमें पर्याप्तकतिर्यञ्चोके औषमिक सम्यग्दर्शन है और क्षायिक तथा क्षायोपमिक सम्यग्दर्शन पर्याप्तक और अपर्याप्तक दोनोंके होते हैं । तिरश्चियोंके क्षायिक सम्यग्दर्शन नहीं होता, क्योंकि कर्मभूमिज मनुष्यके ही दर्शनमोहकी क्षपणाका प्रारम्भ होता है और क्षपणाके पूर्व तिर्यञ्च आयका बन्ध करनेवाला मनुष्य भोगभूमिके पुरुषवेदी तिर्यञ्चोंमें ही उत्पन्न होता है स्त्रीवेदी तिर्यञ्चोंमें नहीं 1 नबीन उत्पत्तिको अपेक्षा पर्याप्तकतिरश्चियोंके औपशमिक और क्षायोपमिक ये दो सम्यग्दर्शन होते हैं। मनुष्यगलिमें पर्याप्तक और अपर्याप्तक मनुष्योंके क्षायिक और क्षायोपशमिक ये दो सम्यग्दर्शन होते हैं। औपशमिक सम्यग्दर्शन पर्याप्तक मनुष्योंके ही होता है अपर्याप्तक मनुष्योंके नहीं । मानुषीस्त्रीवेदी मनुष्योंको पर्याप्तक अवस्थामें तीनों होते हैं परन्तु अपर्याप्तक अवस्थामें एक भी नहीं होता। क्षायिकसम्यग्दर्शन भाववेदकी अपेक्षा ही होता है द्रव्यवेदकी अपेक्षा नहीं । देवगतिमें पर्याप्तक और अपर्याप्तक दोभाके तीनों सम्यग्दर्शन होते हैं । उपशम सम्यग्दष्टि जीव मरकर देवोंमें उत्पन्न होते हैं । इस अपेक्षा दहां अपर्याप्सक अवस्थामें भी औपशभिक सम्यक्त्वका सदभाव बनता है। भवनवासी ध्यन्तर और ज्योतिष्क देव, उनको देवाङ्गनाओं तथा सौधर्मशान स्वर्गकी देवाङ्गनाओंके अपर्याप्तक अवस्थामें एक भी सम्यग्दर्शन नहीं होता, किन्तु उनके पर्याप्तक अवस्थामें औपमिक और क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन होते हैं।
प्रश्न-सम्यग्दर्शनका साधन क्या है ?
उत्तर-साधनके अन्तरङ्ग और बहिरङ्गकी अपेक्षा दो भेद हैं । सम्यग्दर्शनका अन्तरङ्गसाधन, मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्व प्रकृति तथा अनन्तानुबन्धी, क्रोध-मान-माया-लोभ इन सात प्रकृतियोंका उपशम, क्षय और क्षयोपशम है.। बहिरमसाधन, नरकगतिमें चौथी पृथिवीके पहले अर्थात् तीसरी पृथिवीतक किसीके जालिस्मरण, किसीके धर्मश्रवण और किसीके तीव्रवेदनाका अनुभव है। चौथी पृथिवीसे सातवी पृथिवीतक जातिस्मरण और तीव्रवेदनाका