________________
प्रथम अधिकार
संख्या-वस्तुकी गणनाको संख्या कहते हैं। क्षेत्र-वस्तुके वर्तमान निवासको क्षेत्र कहते हैं। स्पर्शन-वस्तुके त्रिकाल-सम्बन्धी निवासको स्पर्शन कहते हैं । काल–वस्तुके अस्तित्वके समयको काल कहते हैं।
अन्तर-वस्तुके नष्ट होनेपर पुनः उसकी उत्पत्तिमें जो व्यवधान पड़ता है उसे अन्तर कहते हैं।
भाव-वस्तुके गुणोंको भाव कहते हैं । जैसे जीवके औपशमिकादि भाव । अल्पबहुत्व वस्तुके भेदोंमें होनाधिकताको अल्पबहुत्व कहते हैं ।
इन आठ अनुयोगोंका गुणस्थान और मार्गणाओंकी अपेक्षा विशद वर्णन धवलादि गन्थों में देखना चाहिये ! ५३ ।
सप्त तत्त्वोंको जानने की प्रेरणा
शालिनी छन्द सम्यग्योगो मोक्षमार्ग पप्रिन्सुयस्ता नामस्थापनाद्रव्यभावैः । स्याद्वादस्थांप्राप्य तैस्तैरुपायैः प्राग्जानीयात्सप्ततची क्रमेण ॥५४॥
अर्थ-मोक्षमार्गको प्राप्त करनेका इच्छुक मनुष्य, अपने मन-वचन-कायरूप योगोंको ठीक कर नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव निक्षेपके द्वारा व्यवहृत तथा स्याद्वाद सिद्धान्तमें निरूपित सात तत्त्वोंके समूहको पूर्वोक्त उपायों द्वारा सबसे पहले यथाक्रमसे जाने ।
भावार्थ---जीव,अजीब, आसब, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये सात तत्त्व सम्यग्दर्शनके मूल विषय हैं । इसलिये मोक्षमार्ग में प्रवेश करनेके इच्छुक मनुष्यको इन सात तत्त्वोंको सबसे पहले अच्छी तरह जान लेना चाहिये । इन सात तत्त्वोंका न्यास अर्थात् व्यवहार नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव इन चार निक्षेपोंके द्वारा होता है तथा उनके जानने के उपाय प्रमाण, नय, निर्देश तथा सत्, संख्या आदि अनुयोगों के रूपमें ऊपर दिखाये जा चके हैं ।। ५४ ।।
इस प्रकार अमृतचन्द्राचार्यद्वारा विरचित तत्त्वार्थसारमें सात तत्त्वोंका वर्णन
करनेवाला पीठिकावन्ध नामका प्रथम अधिकार समाप्त हुआ।