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तत्त्वार्थसार
मोक्षका मार्ग स्यात्सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रत्रितयात्मकः ।
मार्गो मोक्षस्य भव्यानां युक्यागमसुनिश्चितः ।। ३ ।। अर्थ-भव्यजीवोंके मोक्षका मार्ग सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र इन तीनोंके समूहरूप है जो युक्ति और आगमसे अच्छी तरह निश्चित है।
भावार्थ-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र इन तीनोंकी एकरूपता ही मोक्षका मार्ग है अर्थात् ये तीनों मिलकर ही मोक्षके मार्ग हैं, एक-एक अथवा एक-दो मोक्षके मार्ग नहीं है. यह मोक्ष भल्य जोलोको दी होता है अभव्य जीवोंको नहीं, इसलिये ग्रन्थकारने 'भव्याना' पदके द्वारा मोक्षके अधिकारी जीवोंका वर्णन किया है। जिस प्रकार औषधके श्रद्धान, यथार्थज्ञान और विधिपूर्वक सेवन करनेसे रोगका नाश होता है, एक या दोसे नहीं। इसी प्रकार सम्यग्दर्शन आदि तीनोंके मिलनेसे मोक्ष होता है, इस यत्तिसे तथा सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः' इत्यादि आगमसे यह बात अच्छी तरह निश्चित है ।। ३ ।।
सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रका स्वरूप श्रद्धानं दर्शनं सम्यग्ज्ञानं स्यादत्रयोधनम् ।
उपेक्षणं तु चाग्निं तत्त्वार्थानां सुनिश्चितम् ।।४।। अर्थ-तत्त्व-अपने-अपने यथार्थ स्वरूपसे महित जीव, अजीव आदि पदार्थोंका श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन, उनका ज्ञान होना सम्यग्ज्ञान और रागादिभावोंकी निवृत्तिरूप उपेक्षा होना सम्यक्चारित्र सुनिश्चित है ।। ४ ॥
___ सर्वप्रथम तत्त्वार्थ हो जाननेके योग्य हैं श्रद्धानाधिगमोपेक्षाविषयत्वमिता ह्यतः।
बोध्याः प्रागेव तत्वार्था मोक्षमार्ग बुभुत्सुभिः ॥५॥ अर्थ-मोक्षमार्गको जाननेके इच्छुक जीवोंको सबसे पहले, सम्यग्दर्शन, सम्याज्ञान और सम्यक्चारित्रके विषयभूत तत्त्वार्थ जानने के योग्य हैं ।। ५ ॥
सात तत्त्वार्थोंके नाम जीवोऽजीवासयौ बन्धः संवरो निर्जरा तथा । मोक्षश्च सप्त तत्वार्था मोक्षमागैषिणामिमे ।।६।।