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स्वामि लवजी की अनुयायी है न कि लौकाशाह की। क्योंकि नौकाशाह के अनुयायी तो मर्तिपूजक और हाथ में मुंहपछि रखने वाले आज भी हजारों की तादाद में मौजूद हैं। ____ प्रस्तुत पुस्तक को सूक्ष्म दृष्टि से अवलोकन करने पर मालम होता है कि लेखक महोदय ने इसके लिये बहुत परिश्रम और शोध खोज की है क्योंकि कितने ही लेखकों ने श्रीमान लौकाशाह का चरित्र बहुत कल्पनाओं के रंग से रंग दिया है इससे उसकी असलियत का विकृत रूप बन गया है। मुख्य करके लोकाशाह के जीवनचरित्र के लिये स्थानकमार्गी समाज के तत्वज्ञानी श्रीमान् बाड़ीलाल मोतीलाल शाह, श्रीमान् सौभाग्यचंदजी लघु शतावधानी (संतबालजी ) स्था. पूज्य अमोलखऋषिजी. और स्थान साधु मणिलालजी ने लिखा है वह सब एक दूसरे से विरुद्ध है इस बात को लेखक महोदय ने इस पुस्तक में बतलाने का ठीक प्रयत्न किया है । जैसे कि श्रीमान् वा-मो-शाह और संतबालजी ने लौकाशाह के लिये बतलाया है कि उनका जन्म अहमदाबाद में हुवा तथा वह बड़ा भारी साहूकार, विद्वान और मर्मज्ञ था। उसने गृहस्थावस्था में यतियों से कई सूत्र प्राप्त कर एकएक प्रति यतियों के लिये और एक एक प्रति स्वयं अपने लिये लिखी उसने अपने मत को चारों तरफ खूब फैलाया इत्यादि। इसी तरह उनके ही पूज्य स्था० मुनि मणिलालजो उनके विरुद्ध अपनी पट्टावलि में लिखते हैं कि लौकाशाह का जन्म मरहटवाड़ा में हुआ उनका विवाह और एक पुत्र भी यहाँ ही पैदा हुश्रा । बाद वहां से लोकाशाह ने अहमदाबाद में आकर एक मुसलमान बा. की नौकरी की। कुछ समय पश्चात् वदों से नौकरी छोड़कर पाटण
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