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प्राक्कथन
Narcom . एक सामान्य मनुष्य के चरित्र को प्रकाश में लाने के लिये . करीब ३०० पृष्ठों की इतनी बड़ी भारी पुस्तक देखकर पाठकों को बड़ा भारी आश्चर्य होगा कि सचमुच ही विद्वान साहित्यप्रेमी वयोवृद्ध दीर्घअनुभवी मुनिराजश्री ज्ञानसुंदरजी महाराज ने इस पुस्तक को लिख कर कमाल किया है क्योंकि लौं काशाह को इस रूप में सर्व साधारण तो क्या परन्तु उनके खास अनुयायी वर्ग
और स्थानकमार्गी भी नहीं जानते थे। इसलिये जैन समाज को उसमें भीस्थानकमार्गी समाज को तो मुनिराजश्री का बड़ा भारी आभार मानना चाहिये । क्योंकि उनकी सम्प्रदाय के माने हुए आद्यस्थापक पुरुष के जीवन चरित्र के लिये मुनिश्री ने प्राचीन एवं सर्व मान्य प्रमाणों को बहुत अच्छी खोज की है। नकि स्थानकमागियों को वरह सिर्फ कल्पना ही की है इस स्थान पर यह कह देना भी अतिशय युक्ति न होगा कि लेखक श्री ने जैनधर्म के भूतकालिन इतिहास का अच्छा दिग्दर्शन कराया है।
लेखक महोदय ने इस पुस्तक का नाम 'श्रीमान लोकाशाह' के जी० इ० रक्खा है। जिसमें उन्होंने यह बतलाया है कि लौकाशाह एक जैन श्रावक और त्रिकाल प्रभुपूजा करने वाला था परन्तु मस्तिव्यता के कारण उस पर अनार्य इस्लाम धर्म को छाया पड़ी। यही कारण है कि श्रीमान् लोकाशाह ने जैनागम,
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