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है कबी भी पुद्गलोंसे तृप्तो न आइ और न आवेगा। जो महा पुरुन षों इन्ही सडन पडन विध्वंसन स्वभावाले पुद्गलोंसे अरूची करने हुवे ही संसारका पार किया है वास्ते उक्त पुद्गलोंमें राचना नहीं चाहिये ।
यह नव वाड और दशवा कोटका पूरण जाबता रखते हुये मन वचन और कायासे ब्रह्मचार्यव्रत पालन करेगा करावेगा करते हुवे को साहिता और अनुमोदन · देगा वह जीव शीघ्र ही 'मोक्षमें जावेगा। ... देखिये नारद ऋषियों के प्रकृतिका ही स्वभाव होता है कि अनेक इदर उदरकी बातों कर टंटा पेप्ताद करा देते है परन्तु सर्व गुण शीरोमणी एक ही ब्रह्मचार्यका गुण होनेसे शास्त्रकारोंने मोक्षगामी काहा है। ब्रह्मचार्य व्रतका महात्व शास्त्रकारोंने खुब ही विस्तार पूर्व किया है परन्तु यहां पर कण्ठस्थ करनेके लिये स्वरूप मात्र सूचनारूप ही बतलाया है। ___ गृहस्थ पुरुषोंने अपनी चित्तवृति स्थिरता माफीक ब्रह्मचार्य व्रतको धारण करना चाहिये कारण गृहस्थोंका भी फर्ज है कि पर स्त्री वैश्यादिका तो जावजीवशुद्धि बोलकुल ही त्याग करे और स्वस्त्रि संबंधी बन शके तो सर्वता त्याग करे न बने तो अष्टमि चतुर्दशी पुर्णमावश्यादि पर्व तीथीका तो आवश्य त्याग करे जिस दिन त्याग हो उन्ही दिन धर्मशाला या एकान्त मकानमें ही शयन करे तांके ब्रह्मचायं ठोक तरेहसे पालन होशके इतिशम्।