________________
महोपाध्याय समयसुन्दर
(१३ )
चन्द्र गणि तपगच्छीय विजयदानसूरि के शिष्य हैं तथा भानुचन्द्र महोपाध्याय के दीक्षा गुरु हैं। नाम और समय की साम्यता वश ही देशाईजी भूल कर गये हैं।
शिक्षा और पद कवि ने अपना विद्यार्जन यु० जिनचन्द्रसूरि वाचक महिमराज ( श्री जिनसिंहसूरि* ) और समयराजोपा* आचार्य जिनसिंहसूरि युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि के पट्टधर थे और
साथ ही थे एक असाधारण प्रतिभाशाली विद्वान् । इनका जन्म वि० १६१५ के मार्गशीर्ष शुक्ला पूर्णिमा को खेतासर ग्राम निवासी चोपड़ा गोत्रीय शाह चांपसी की धर्मपत्नी श्री चाम्पलदेवी की रत्नकुक्षि से हुआ था। आपका जन्म नाम था मानसिंह । सं० १६२३ में जब आचार्य जिनन्चन्द्रसूरि खेतासर पधारे थे, तब आचार्यश्री के उपदेशों से प्रभावित होकर एवं वैराग्यवासित होकर आठ वर्ष की अल्पायु में ही आपने आचार्यश्री के पास ही दीक्षा ग्रहण की। दीक्षावस्था का आपका नाम रखा गया था महिमराज आचार्यश्री ने स०१६४० माघ शुक्ला५को जेसलमेर में आपको 'वाचक' पद प्रदान किया था। 'जिनचन्द्रसूरि अकबर प्रतिबोध रास' के अनुसार सम्राट अकबर के आमंत्रण को स्वीकार कर सूरिजी ने वाचक महिमराज को गणि समयसुन्दर आदि ६ साधुओं के साथ अपने से पूर्व ही लाहोर भेजा था। लाहोर में सम्राट अापसे मिलकर अत्यधिक प्रसन्न हुआ था । सम्राट् के पुत्र शाहजादा सलीम (जहांगीर) सुरत्राण के एक पुत्री मूलनक्षत्र के प्रथम चरण में उत्पन्न थो; जो अत्यंत ही अनिष्टकारी थी। इस अनिष्ट का परिहार करने के लिये सम्राट् की इच्छानुसार सं० १६४८ चैत्र शुक्ला पूर्णिमा को महिम
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org