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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । हुआ। बड़ी हार्दिकता थी, उस समय देखा कि आप कितनी सुन्दर उसके बाद श्रमणसंघ को सुदृढ़ करने के लिए, शेष कार्य लोक भाषा में कविता बनाते हैं और जब गाकर सुनाते तो | सम्पन्न करने के लिए आचार्य उपाचार्य का सन् १९८७ का संयुक्त श्रोतागण झूम उठते हैं। उसमें कितना आकर्षण था। कुछ दिन वर्षावास हुआ। चातुर्मास सफल करने के लिए आपने काफी प्रयास साथ-साथ रहे, चातुर्मास के पश्चात् भी आपको कर्नाटक जाना था,
किया। आने वाली समस्या को सुन्दर ढंग से हल किया। आपकी आचार्य भगवन्त का स्वास्थ्य थोड़ा अस्वस्थ हुआ, सुनकर आप | गंभीरता, सरलता, सरसता के दर्शन उस समय हुए जब आचार्यश्री घोड़नदी पधारे।
जी का दीक्षा अमृत महोत्सव व सामूहिक दीक्षा का कार्यक्रम भी उस समय श्रमणसंघ का संगठन सुदृढ़ कैसे हो, उसकी बड़े धूमधाम से सम्पन्न हुआ। साधना एवं स्वाध्याय में तल्लीन रहने व्यवस्था सुन्दर ढंग से चले इस विषय को लेकर काफी चिन्तन । वाले महान् सन्त आज हमारे बीच नहीं रहे किन्तु उनकी स्मृतियाँ हुआ। कुछ पदाधिकारियों के चयन को लेकर भी चर्चा हुई। उस हृदय-पटल पर अंकित हैं। समय आपको उपाध्याय बनाने का आचार्यश्री जी ने निश्चय किया और पदाधिकारियों से राय मँगा ली। पूना वर्षावास में संवत्सरी के
बहुआयामी व्यक्तित्व दिन घोषणा की, आपका रायचूर वर्षावास था। आप बैंगलोर, मद्रास पधारे, सन् ७९ का वर्षावास आचार्यश्री जी का
-श्री सौभाग्य मुनि 'कुमुद' सिकन्दराबाद था। आप भी दक्षिण की ओर से लौट रहे थे, और
(श्रमण संघीय महामंत्री) हैदराबाद में पुनः गुरुदेव के साथ आप सभी का सम्मिलन हुआ। आचार्य, उपाध्याय संयुक्त वर्षावास हुआ। चातुर्मास में आप सभी मैं एक समुद्र के किनारे बैठा हूँ, किसी लहर को पकड़ना का पूर्ण सहयोग रहा। वर्तमान आचार्यप्रवर श्री देवेन्द्र मुनि म. हर चाहता हूँ किन्तु लहरें इतनी अधिक उमड़ती चली आ रही हैं कि समय साथ थे।
किसी को पकड़ पाना संभव नहीं लग रहा है, हर लहर का अपना इन सुदीर्घ काल में आपका काफी सहयोग रहा अतः अनेक
सौन्दर्य है, अपनी गूंज है। समस्या, भावी योजना सभी बैठकर तैयार करना, कार्यान्वित उपाध्यायप्रवर श्री पुष्कर मुनि जी म. का व्यक्तित्व एक समुद्र करना, उस समय आपसे काफी शिक्षा मिली। हम सभी छोटे सन्तों का व्यक्तित्व है, विस्तृत और गहन। मैं उनके जीवन से उमड़ती को आपके सान्निध्य में बैठने का आगम-चर्चा को अवकाश मिला।। अनेकानेक विशिष्टताओं में से किसी एक को व्याख्यायित कर आगे उस समय अभिनन्दन ग्रन्थ आपको भेंट करना था। आपने कहा बढ़ना चाहता हूँ, किन्तु मेरे सामने प्रश्न है कि किस विशेषता को किसी प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति को लाने की जरूरत नहीं है। हमारे
लेकर चलूँ सभी विशेषताएँ अपना एक अलग महत्व रखती हैं। हीरे राष्ट्रपति हमारे संघनायक हैं, इन्हें छोड़कर किसी को बुलाने की
के हर पहलू की तरह। उनकी प्रत्येक विशिष्टता में एक अप्रतिम जरूरत नहीं है। यह आपकी उदारता, समयसूचकता एवं बड़ों के चमक है। सन्मान का द्योतक है।
सादड़ी सम्मेलन का वह उत्साहपूर्ण वातावरण, चारों तरफ ___ संगठन के आप हिमायती थे, उदात्त विचार के धनी थे, हम
फैली गहरी चहल-पहल। दूर-दूर से पधारे मुनियों का परस्पर सभी दूध शक्कर बनकर रहे। इसलिए ६-७ माह किधर निकले
स्नेहपूर्वक मिलन, सभी तरफ आनन्दपूर्ण रौनक, उसी सुन्दर इसका पता ही नहीं चला। चातुर्मास बाद आचार्यश्री जी कर्नाटक
वातावरण में एक भरपूर युवा सन्त ने यकायक मुझे अपने हाथों में होकर महाराष्ट्र पधारे, आप भी महाराष्ट्र होकर गुजरात,
उठा-सा लिया, और गम्भीर स्वर में पूछा-क्या तुम्हारा ही नाम है राजस्थान में पधारे। करीब ९ वर्ष के बाद सन् १९८७ में पूना
सौभाग्यमुनि? मैंने कहा-तहत। अच्छा क्या पढ़ते हो? शिखर सम्मेलन हुआ। आपका स्वास्थ्य भी इतना अनुकूल नहीं था, प्रवास काफी दूर का था, फिर भी आचार्यश्री जी का आग्रह भरा
मैंने कहा-लघुसिद्धान्त कौमुदी रट रहा हूँ। आमंत्रण पहुँचा, डेपूटेशन पहुंचा और तुरन्त स्वीकृति दी और "कहाँ तक याद कर ली?" अपने शरीर की ओर लक्ष्य न देते हुए सर्दी-गर्मी परिषह को सहते
"भ्वादिगण चल रहा है।" हुए पूना पहुँचे। सम्मेलन के कार्य में पूर्ण सहयोग दिया, सम्मेलन सफल रहे यही सभी सन्तों का विचार था।
उन्होंने एक-दो सूत्र पूछे। मैंने वृत्ति सुना दी, बहुत खुश, और सभी पदाधिकारी सन्तों के विचार विनिमय के बाद शास्त्री श्री
कहा-अच्छा पढ़ते रहो। देवेन्द्रमुनि जी म. को उपाचार्य पद पर प्रतिष्ठित करने का निर्णय इस प्रथम परिचय के बाद मैं उस सत्र में अनेक बार महाराज हुआ, सम्मेलन में पद की घोषणा एवं सन्मान में चादर भी भेंट की श्री के दर्शन करता रहा। हर बार मुझे देखकर वे बहुत खुश होते गई। हम सभी को प्रसन्नता हुई।
और कुछ न कुछ नयी प्रेरणा अवश्य प्रदान करते। कन्वतस्तष्कप्तप्त
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