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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ ।
व व्यवहार में कितने विनम्र और सरल हैं। वास्तव में ये ही गुण थे एक अपूरणीय क्षति
जो उनकी महानता को और अधिक महान बना रहे थे। -प्रवर्तक उमेश मुनि ‘अणु' उपाध्याय श्री के स्वर्गवास से स्थानकवासी समाज की महान
क्षति हुई है। उस संत पुरुष को शत-शत नमन! उपाध्याय श्री के संथारा सहित देहावसान की बात ज्ञात हुई। सुनकर एक आघात-सा लगा।
आपका आशीर्वाद मेरे साथ ! काफी समय से उपाध्याय श्री जी अस्वस्थ थे। आपश्री ने लम्बी दीक्षा-पर्याय पायी। बहुत विशाल क्षेत्र में विचरण किया। आप अच्छे
-प्रवर्तक श्री रमेशमुनि जी म. प्रवचनकार थे। आपने साहित्य-क्षेत्र में विशिष्ट योगदान दिया। आप दीर्घ अनुभवी संत थे। आपके वियोग से बहुत बड़ी क्षति हुई है। वे असीम आस्था के केन्द्र प्रातः स्मरणीय परम पूज्य मेवाड़ भूषण आपश्री के पूज्य गुरुदेव थे। वियोग दुःखद होता है। आपने उनकी धर्म सुधाकर गुरुदेव श्री प्रतापमल जी म. का जब उपाध्यायप्रवर भरपूर सेवा की। आप पर उनकी विशेष कृपा थी। उनकी छत्र-छाया राजस्थान केसरी श्रद्धेय श्री पुष्कर मुनि जी म. से मधुर मिलन में आपने अपना खूब विकास किया। उनके गौरव में आपने
हुआ उस समय मैं भी गुरुदेवश्री की सेवा में ही था। मैंने पहली श्रीवृद्धि की। सचमुच में आपने गुरु-ऋण बहुत अंशों में चुका दिया। बार पावन दर्शन किए थे उपाध्याय श्री के। फिर भी शिष्य को गुरु का वियोग पीड़ित करता है। आपके लिये मैंने अपना परिचय देते हुए कहाभी यह बात अपवादरूप नहीं हो सकती है। फिर भी आप ज्ञानी
"मेरे परिवार के सदस्य तथा जन्मभूमि मजल श्रीसंघ के लोग शिष्य हैं और हमारे आचार्य हैं। मैं आपश्री को क्या आश्वासन की
सभी आपके भक्त तथा अनुयायी हैं। गुरु आम्नाय की दृष्टि से सभी बातें लिखू। यह छोटे मुँह बड़ी बात होगी। हम सभी सन्त-सती यही
आपके शिष्य हैं।" मंगल-कामना करते हैं कि आपने गुरुकृपा से जो भी पाया है, वह वियोग की अग्नि से तपकर विशेष उज्ज्वल और तेजस्वी बने।
प्रसन्न मुद्रा में उपाध्यायश्री ने अपना वरदहस्त मेरे सिर पर आप परम श्रेष्ठ अनुशास्ता बनकर श्रमणसंघ में रत्नत्रय से सम्पन्न
रखते हुए फरमायाआत्माओं के निर्माता, पोषक, शोधक, संरक्षक और संवर्धक बनें। 1 "रमेश मुनि! तुम पहले मेरे शिष्य हो, फिर मेवाड़भूषण जी दिवंगत आत्मा जब तक परमात्म-स्वरूप को उपलब्ध न कर ले, तब म. के। दीक्षा लेकर रत्नत्रय की आराधना साधना में तुमने अच्छी तक उसके कारणरूप जिनशासन को प्राप्त करके उसमें रमण प्रगति की। तुमने अपने गुरु तथा सम्प्रदाय के गौरव को बढ़ाया है। करते रहें।
भविष्य में भी इसी तरह जिनशासन तथा श्रमणसंघ की गरिमा-महिमा में दिन-दूनी रात चौगुनी अभिवृद्धि करोगे। यही मेरी हार्दिक अभिलाषा है।"
मैंने कहाजितने महान ! उतने ही विनम्र !
"हुजूर की महती कृपा है शुभ-भावना रूप आशीर्वचन रहे तो -उ. भा. प्रवर्तक भण्डारी श्री पदमचन्दजी म. यह अकिंचन अवश्य अपनी आत्म-साधना-आराधना तथा
शासनप्रभावना में उत्तरोत्तर सफल होता जाएगा।" देहली, वीर नगर आदि स्थानों में उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी "मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है।" प्रसन्न मुद्रा में म. के साथ रहने का अवसर आया। तब मैंने उनको बहुत नजदीक
उपाध्यायश्री ने फरमाया। से समझा/देखा। उनका हृदय बहुत विशाल और प्रेमल था। जप,
सविनय साभार मेरे मुँह से निकलाध्यान-साधना में उनकी गहरी निष्ठा थी और वह हर किसी को ही जप की प्रेरणा देते थे। भक्त लोग उनके पास आकर अपनी पीड़ा
"चिन्त्यो न हंत! महतां यदि वा प्रभावः।" और बाधाओं की चर्चा करके उनसे मार्गदर्शन माँगते थे। तो आचार्यप्रवर पूज्य श्री देवेन्द्रमुनि जी म. के आचार्य पद चादर उपाध्याय श्री का हृदय करुणा से पसीज उठता था। वे बहुत ही समर्पण समारोह के अवसर पर पुनः जब उदयपुर की पावन धरा दयालु थे। दूसरों के दुःखों से द्रवित हो जाते और अपने स्वास्थ्य पर उपाध्यायश्री के दर्शन हुए तो वही स्नेह-आत्मीयता का खजाना की परवाह किये बिना दूसरों का कष्ट मिटाने का प्रयास करते। प्राप्त हुआ। साथ ही वे पूर्व में मिले आशीर्वचन रूप ही मेरे उनसे जब कभी बातचीत होती तो लगता इतने महान सन्त बातचीत हृदय-स्थल पर चमक रहे हैं।
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