Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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[ ३५ ] विषय
पृष्ठ | विषय मीमांसक द्वारा अर्थापत्तिप्रमाणको
वह शक्ति एक है कि अनेक ? पृथक मानना
५००-५०३ जैनद्वारा नैयायिकके शक्ति विषयकअभावविचार ( मीमांसक) ५०४-५१. मंतव्यका निरसन प्रत्यक्षद्वारा प्रभावांशको नहीं जान सकते ५०४
शक्ति प्रत्यक्षगम्य न होकर अनुमान अनुमान द्वारा भी अभावांशको नहीं जान
गम्य है सकते
अतीन्द्रिय शक्ति सद्भावकी सिद्धि के प्रभावके प्रागभावादि चार भेद ५०६
लिये प्रतिबंधक मरिण आदिका अभावप्रमाणको नहीं माननेसे हानि ५०७
दृष्टांत सदंशके समान असदंश इन्द्रिय प्रत्यक्ष नहीं ५०६
अग्निके दाहकार्य में प्रतिबंधकका प्रभाव
सहकारी मानना असत् है अर्थापत्तेः अनुमानेऽन्तर्भावः ५११-५२१
प्रतिबंधकमरिण और उत्तंभकमरिण का जैनके प्रमाण वैविध्यकी सिद्धि ५११
प्रभाव सहकारी है ऐसा कहो तो अर्थापत्ति और अनुमानमें पृथक
भी ठीक नहीं पना नहीं है
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कार्यकी उत्पत्तिमें कौनसा अभाव सहअर्थापत्तिको उत्पन्न करनेवाले पदार्थका
कारी होगा? अविनाभाव किस प्रमाणसे जाना
शक्तिके प्रभावको सिद्ध करनेके लिये जाता है ?
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प्रयुक्त हुमा नैयायिकका अनुमान अनुमानमें सपक्षका अनुगम रहता है
प्रयोग गलत है और अर्थापत्तिमें नहीं, अतः दोनों
| आसाधारण धर्मवाले कारणसे ही कार्य में भेद है ऐसा कहना भी अयुक्त है ५१७ ।
होते हैं अर्थापत्ति अनुमानान्तर्भावका सारांश ५१६-५२१
जैसे अतीन्द्रियस्वरूप अदृष्टको माना शक्तिविचारका पूर्वपक्ष १२२-५२४
है वैसे अतीन्द्रियस्वरूप शक्तिको शक्तिस्वरूपविचारः (नैयायिक) ५२५-५५०
भी मानना चाहिये अग्निका स्वरूप प्रत्यक्ष प्रमाणसे सिद्ध है ? ५२५
शक्तिविशेषको स्वीकार किये विना सहकारी कारणोंको शक्ति माना तो ५२६ अवस्थाविशेष सिद्ध नहीं होता जैनने शक्तिको नित्य माना है या अनित्य ? ५२७ द्रव्यशक्ति नित्य है और पर्यायशक्ति पदार्थसे शक्ति भिन्न है कि अभिन्न ?
अनित्य यदि भिन्न है तो यह शक्तिमान की पर्यायशक्ति अनेक सहकारी कारणोंसे शक्ति है ऐसा संबंध वचन नहीं बनता ५२८ । उत्पन्न होती है
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