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मागधी
____ २९ हेमचन्द्र, त्रिविक्रम और लक्ष्मीधर ने पैशाची के साथ चूलिका-पैशाची का भी विवेचन किया है।'
मागधी मगध जनपद (बिहार) की यह भाषा थी। अर्धमागधी, शौरसेनी, महाराष्ट्री और पैशाची की भाँति इस प्राकृत में स्वतंत्र रचनायें नहीं पाई जातीं, केवल संस्कृत नाटकों में इसके प्रयोग देखने में आते हैं। पूर्व और पश्चिम के वैयाकरणों में मागधी के सम्बन्ध में काफी मतभेद पाया जाता है। मार्कण्डेय ने प्राकृतसर्वस्व (पृष्ठ १०१ ) में कोहल का मत दिया है जिसके अनुसार यह प्राकृत राक्षस, भिक्षु, क्षपणक और
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४. ३०३-२४) और नमिसाधु ने भी रुद्रट के काव्यालंकार की टीका (पृष्ठ १४ ) में पैशाची भाषा के नियम दिये हैं। कवि राजशेखर ने काव्यमीमांसा (पृष्ठ १२४ ) में कहा है कि अवन्तिका, पारियात्र और दशपुर आदि के कवि भूतभाषा (पैशाची) का प्रयोग करते थे। कल्हण की राजतरंगिणी में दर्दर और म्लेच्छों के साथ भोट्टों को गिनाया गया है । इन लोगों को पीतवर्ण का बताया है जिससे ये मंगोल नस्ल के जान पड़ते हैं। पैशाची की तुलना उत्तर-पश्चिमी सीमाप्रान्त में बोली जाने वाली पश्तो भाषा से की जा सकती है। देखिये डाक्टर हीरालाल जैन का उपर्युक्त लेख।
१. हेमचन्द्र के अनुसार इस भाषा में वर्ग के तीसरे और चौथे अक्षर के स्थान में क्रमशः वर्ग के पहले और दूसरे अक्षर हो जाते हैं (जैसे गिरि-किरि, धूली-थूली, भगवती-फकवती) और र के स्थान में ल हो जाता है (जैसे रुद्द-लुद्द, हरं-हलं)। चूलिक, चूडिक अथवा शूलिकों का नाम तुखार, यवन, पलव और चीन के लोगों के साथ गिनाया गया है। बागची के अनुसार यह भाषा सोगडियन लोगों द्वारा उत्तर-पश्चिम में बोली जाती थी। देखिये, डाक्टर हीरालाल जैन का उपर्युक्त लेख।