Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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षष्टाध्यायस्य प्रथमः पादः
२३ ग्रह्यादीनाम्
ग्रहि-आदि (१) ग्रहिः (१) स जग्राह . (१) (१) उसने ग्रहण किया।
(२) त्वं जग्रहिथ (२) तूने ग्रहण किया। (२) ज्या (१) स जिज्यौ (२) (१) वह वृद्ध होगया।
(२) त्वं जिज्यिथ (२) तू वृद्ध होगया। (३) वयिः (१) स उवाय (३) (१) उसने कपड़ा बुना।
(२) त्वं उवयिथ (२) तूने कपड़ा बुना। (१) स विव्याध . (४) (१) उसने ताडन किया।
(२) त्वं विव्यधिथ (२) तूने ताडन किया। (५) वष्टिः (१) स उवाश (५) (१) उसने कामना की।
(२) त्वम् उवशिथ (२) तूने कामना की। (६) विचतिः (१) स विव्याच (६) (१) उसने ठगा।
(२) त्वं विव्यचिथ (२) तूने ठगा। (७) वृश्चतिः (१) स वव्रश्च (७) (१) उसने काटा।
(२) त्वं वव्रश्चिय (२) तूने काटा। (८) पृच्छतिः (१) स पप्रच्छ । (८) (१) उसने पूछा।
(२) त्वं जग्रहिथ (२) तूने पूछा। (९) भृज्जतिः (१) स बभ्रज (९) (१) उसने पकाया।
(२) त्वं बभ्रजिथ (२) तूने पकाया। आर्यभाषा: अर्थ-(उभयेषाम्) वचि-आदि तथा ग्रहि-आदि दोनों (धातो:) धातुओं के (लिटि) लिट् प्रत्यय परे होने पर (अभ्यासस्य) अभ्यास को (सम्प्रसारणम्) सम्प्रसारण होता है।
उदा०-उदाहरण और उनका भाषार्थ संस्कृत-भाग में देख लेवें।
सिद्धि-(१) उवाच। वच्+लिट्। वच्+तिम्। वच्+णल् । वच्+वच्+अ । व+वाच्+अ। उ अ+वाच्+अ। उ+वाच+अ। उवाच ।
यहां वच परिभाषणे' (अ०प०) धातु से लिट् प्रत्यय है। उसके लकार के स्थान में तिप्तस्झि०' (३।४।७८) से तिप् आदेश और उसे परस्मैपदानां णल०' (३।४।८२) से णल् अदेश होता है। लिटि धातोरनभ्यासस्य (६।१८) से वच्' धातु को द्वित्व