Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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षष्ठाध्यायस्य प्रथमः पादः (१६) वेविच्यते । यहां पूर्वोक्त व्यच्' धातु से 'धातोरेकाचो हलादे:०' (३।१।२२) से यङ् प्रत्यय है। प्रत्यय के ङित् होने से इस सूत्र से व्यच्' धातु को सम्प्रसारण होता है।
(१७) वृक्णः । ओव्रश्चू+क्त । वृश्च्+त। वृश्च्+न। वृच्+न। वृक्+न। वृक्+ण । वृक्ण:+सु। वृक्णः ।
यहां 'ओव्रश्चू छेदने (तु०प०) धातु से क्त प्रत्यय है। प्रत्यय के कित् होने से इस सूत्र से वश्च' के रेफ को ऋकार सम्प्रसारण होता है। 'ओदितश्च' (७।२।१६) से क्त के तकार को नकार आदेश होता है। स्को: संयोगाद्योरन्ते च' (८।२।२९) से संयोगादि सकार (श्) का लोप चो: कु:' (८।२।३०) से चकार को ककार और 'अट्कुप्वाङ्' (८।४।२) से नकार को णत्व होता है। ऐसे ही क्तवतु प्रत्यय करने पर-वक्णवान् ।
(१८) वृश्चति । यहां पूर्वोक्त व्रश्च्' धातु से लट् प्रत्यय और उसके स्थान में तिम् आदेश है। तुदादिभ्यः श:' (३।११७७) से 'श' विकरण प्रत्यय है। सार्वधातुकमपित् (१।२।४) से 'श' प्रत्यय के डित् होने से इस सूत्र से वश्च्' धातु को सम्प्रसारण होता है।
(१९) वरीवृश्च्यते। यहां पूर्वोक्त वृश्च्' धातु से 'धातोरेकाचो०' (३।१ ।२२) से यङ् प्रत्यय है। प्रत्यय के डित् होने से इस सूत्र से वृश्च्' धातु को सम्प्रसारण होता है। यहां रीगृदुपधस्य च' (७।४।९०) से रीक् आगम प्राप्त नहीं अत: वा०-'रीगृतवत इति वक्तव्यम्' (७।४।९०) से अभ्यास को रीक् आगम होता है।
(२०) पृष्टः । प्रच्छ्+क्त। पृच्छ+त। प्रश्+त। प्रष्+ट । प्रष्ट+सु। प्रष्टः।
यहां प्रच्छ जीप्सायाम् (तु०प०) धातु से क्त प्रत्यय है। प्रत्यय के कित् होने से प्रच्छ्' धातु के रेफ को ऋकार सम्प्रसारण होता है। 'छ्वो: शूडनुनासिके च' (६।४।१९) से च्छ' के स्थान में 'श' आदेश, वश्चभ्रस्ज०' (८।२।३६) से श् को ए आदेश और 'ष्टुना ष्टुः' (८।४।४०) से तकार को टकार आदेश होता है। ऐसे ही क्तवतु प्रत्यय करने पर-पृष्टवान्।
(२१) पृच्छति। यहां पूर्वोक्त 'प्रच्छ्' धातु से लट् प्रत्यय और उसके स्थान में तिप् आदेश है। तुदादिभ्य: श:' (३१११७७) से 'श' विकरण प्रत्यय है। 'सार्वधातुकमपित् (१।२।४) से 'श' प्रत्यय के डित् होने से इस सूत्र से प्रच्छ्' धातु को सम्प्रसारण होता है।
(२२) परीपृच्छयते । यहां पूर्वोक्त प्रच्छ' धातु से 'धातोरेकाचो०' (३।१।२२) से यङ् प्रत्यय है। प्रत्यय के डित् होने से इस सूत्र से प्रच्छ' धातु को सम्प्रसारण होता। रीगुदुपधस्य च' (७।४।९०) से अभ्यास को रीक आगम होता है।
(२३) भृष्टः । यहां 'भ्रस्ज पाके' (तु०प०) धातु से 'क्त' प्रत्यय है। प्रत्यय के कित् होने से 'भ्रस्ज' धातु के रेफ को ऋकार सम्प्रसारण होता है। वश्चभ्रस्ज०'