Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
के स्थान में अतु आदेश है। 'असंयोगाल्लिट् कित्' (१1214 ) से तस् प्रत्यय के कित् होने से इस सूत्र से वय् के वकार को उकार सम्प्रसारण होता है। 'लिटि धातोरनभ्यासस्य (६ 1१1८) से द्वित्व और 'अकः सवर्णे दीर्घः' (६ | १/९६ ) से दीर्घ होता है । ऐसे ही उस् प्रत्यय करने पर-ऊयुः ।
वे धातु के स्थान में वेञो वयि:' ( २/४/४१ ) से लिट् आर्धधातुक विषय में वयि आदेश होता है और वह लिट् 'असंयोगाल्लिट् कित्' (१1214) से किद्वत् होता है, ङित् नहीं । अतः यहां कित् का ही उदाहरण दिया है, ङित् का नहीं ।
(९) विद्ध: । व्यध्+क्त । व्यध्+त । व् इ अध्+त । विध्+त । विध्+ध । विद्+ध । विद्ध+सु । विद्धः ।
यहां 'व्यध ताडने ' ( दि०प०) धातु से इस सूत्र से क्त प्रत्यय है । प्रत्यय के कित् होने से 'व्यध्' धातु के यकार को इकार सम्प्रसारण होता है । झषस्तथोर्धोऽधः ' (८ 1२1४०) से तकार को धकार और 'झलां जश् झशि' (८/४/५२) से धकार को जश् दकार आदेश होता है। ऐसे ही क्तवतु प्रत्यय करने पर - विद्धवान्
(१०) विध्यति । यहां पूर्वोक्त 'व्यध्' धातु से दिवादिभ्यः श्यन्' (३ | १ | ६९ ) से श्यन् विकरण प्रत्यय है। श्यन् के पूर्ववत् ङित् होने से इस सूत्र से 'व्यध्' धातु को सम्प्रसारण होता है ।
(११) वेविध्यते। यहां पूर्वोक्त 'व्यध्' धातु से 'धातोरेकाचो०' (३।१।२२) से यङ् प्रत्यय है। प्रत्यय के ङित् होने से इस सूत्र से व्यध् धातु को सम्प्रसारण होता है। (१२) उशित: । यहां 'वंश कान्त' (अदा०प०) धातु से क्त प्रत्यय है। प्रत्यय के कित होने से इस सूत्र से 'वश्' धातु के बकार को उकार सम्प्रसारण होता है। ऐसे ही क्तवतु प्रत्यय करने पर - उशितवान् ।
(१३) उष्ट: । यहां पूर्वोक्त 'वश्' धातु से लट् प्रत्यय और उसके लकार के स्थान पर 'तिप्तस्झि०' (३।४।७८) से 'तस्' आदेश है। 'तस्' प्रत्यय के 'सार्वधातुकमपित०' (१।२1४ ) से ङित् होने से इस सूत्र से वश् धातु को सम्प्रसारण होता है। ऐसे ही झि प्रत्यय करने पर - उशन्ति ।
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(१४) विचित: । यहां 'व्यच व्याजीकरणें' (तु०प०) धातु से क्त प्रत्यय है प्रत्यय के कित् होने से इस सूत्र से 'व्यच्' धातु के यकार को इकार सम्प्रसारण होता है ऐसे ही क्तवतु प्रत्यय करने पर - विचितवान् ।
(१५) विचति। यहां पूर्वोक्त 'व्यच्' धातु से लट् प्रत्यय और 'तिप्तस्झि०' (३/४/७८ ) से लकार के स्थान में तिप् आदेश और 'तुदादिभ्य: श:' ( ३ 1१1७७) से 'श' विकरण प्रत्यय है। 'श' प्रत्यय के 'सार्वधातुकमपित्' (१।२1४ ) से ङित् होने से इस सूत्र से व्यच् धातु को सम्प्रसारण होता है।