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विषय-सूची
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१. धर्मोपदेशामृत १-१९८, पृ.१ | दुर्जनकी संगतिकी मझा तो मरना अच्छा है
| मुनिधर्मका स्वरूप मावि जिनेन्द्रका सरन
बेतम मामाको छोड़कर परमें मनुराग जान्तिमायका मरण
कर्मबन्धका कारण है भोप देता जिभदेवका कारण
मूलगुणोंके बिना उत्तरगुति पराकमका प्रयत्न अर्मका स्वरूप व उसके मेव
घातक है धमकी भूबन दयाके धारणकी प्रेरणा
वमके दोषोंको दिखकाकर दिगम्बरलको प्रकला " प्राणियों के वधमें पित्रादिके वधका दोष सम्भव है ९
केसोका कोच वैशम्पादिको बढ़ानेवाला है २ जीवितका वान समेत पार है
स्थितिमोखामकी प्रतिज्ञा दयाके बिना काम, वप प ध्यानदि निरर्थक है।"
समतामाव
११-१५ मुनिधर्मके मालम्बन सगृहस्प है
प्रमादरहित होकर एकान्तबासकी प्रतिज्ञा गृहस्थाश्रमका सरूप गृहस्थधर्मके ग्यारह स्थानों का निर्देश
संसारके स्वरूपको देखकर इ-विषादको म्यर्थता - समस विधायसनोंके परित्यागपर निर्भर है १५
राग-प्रेषके परित्यागके बिना संवर व निरा
सम्भव नहीं है महापापवरूप सात पसनोका नामनिर्देश ६
संसारसमुनसे पार होने की सामग्री चूत सर म्पसमों में प्रमुख है
10-14
मोहको कश करने के निमा सप भाविका लेश मौसका स्वरूप व उसके भक्षक नियंपता १९-२०
सहना म्म है मका सहप व उसके पीनेसे हानि २१-२२ मायोका निष्ट नहीं करता है उसका बोनीकी शिक्षा समान पेक्ष्माय भरसका हार है २२-२४,
परीषहसान भावाचार है मावोट (शिकार) में लिदंपतरसे दीम हीम
समय भनोंका कारण भय (धन) ही है ५१ प्राणिमोका म्पर्म किया जाता है २५-२६
झय्याके लिये पास माविकी भी अपेक्षा करनेपर। परवध और धोखादेहीका का परमवमें उसी
निर्धन्यता मा होती है
५५ __ प्रकारसे भोगना पड़ता है २७-१८
धादिसे कावाधिक पौर परिप्राइसे शातित परची और परमनके अनुरागसे होनेवाली
कर्मका बाब होता है हालियो
.२९-३०
मोक्षकी भी मिळावा उसकी प्राप्तिमें बाधक है ५५ उक्त तादि साम्यसमो कारक करको प्रास
परिप्रहादिकी निन्दा हुप युधिहिर भाविक उदाहरण म्मलन सात ही नहीं, और भी बहुत-से है ।
साधुमासा
पाचापका स्वरूप ग्मसनोंसे होनेवाली हानिको दिलकाकर उनसे विमुख रानेकी प्रेरणा
उपाध्यायका खत्म मिष्यादि भाविकी संगतिको गोवार
साधुनोंका स्वरूप व उनकी सहनशीकता १२-१६ सम्पुकोंकी संगति के लिये प्रेरणा
मारमझानके बिना किया गया काप लेवा पाम्प कलिकासमें दुष्टोंके मध्ममें साधुवाका जीवित
(फसल) से रहित खेतकी रक्षाके समान
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सन्त कठिन