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पनवन्दि-याविंशतिः
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उसमें अत्यन्त आसक्त होनेसे जब चारुदत्तने कमी माता, पिता एवं पत्रीका भी सरम नहीं किया तब मला अन्य कार्यके विषयमें क्या कहा जा सकता है। इस बीच कलिंगसेनाके यहां चारुदत्तके घरसे सोलह करोड़ दीनारें आचुकी थी । तत्पश्चात् जब कलिंगसेनाने मित्रवतीके आभूषणोंको भी आते देखा तब उसने वसन्तसेनासे धनसे हीन चारुवत्तको अलग कर देनेके लिये कहा । माताके इन बचनोंको सुनकर वसन्तसेनाको अत्यन्त दुःख हुआ । उसने कहा हे माता। चारुदत्तको छोड़कर - मैं कुबेर जैसे सम्पत्तिशाली भी अन्य पुरुषको नहीं चाहती । माताने पुत्रीके दुराग्रहको देखकर उपायान्तरसे चारुदतको अपने घरसे निकाल दिया। तत्पश्चात् उसने घर पहुंचकर दुःखसे कालयापन करनेवाली माता और पतीको देखा । उनको आश्वासन देकर चारुदत धनोपार्जनके लिये देशान्तर चला गया । वह अनेक देशों और द्वीपोंमें गया, परन्तु सर्वत्र उसे महान् कष्टोंका सामना करना पड़ा । अन्तमें यह पूर्वोफ्कृत दो देवोकी सहायतासे महा वितिके साथ चम्पापुरी में बापिस आ गया । उसने वसन्तसेनाको अपने घर बुला लिया । पश्चात् मित्रवती एवं वसन्तसेना आदिके साथ सुखपूर्वक कुछ काल विताकर चारुदल्ने जिनदीक्षा लेली । इस प्रकार तपश्चरण करते हुए यह मरणको प्राप्त होकर सर्वार्थसिद्धिमें देव उत्पन्न हुआ । जिस वेश्याव्यसनके कारण चालतको अनेक कष्ट सहने पड़े उसे विवेकी जनोंको सदाके लिये ही छोड़ देना चाहिये। ५अादरउज्जयिनी नगरीमें एक ब्रह्मदत्त नामका राजा था । वह मृगया (शिकार) व्यसनमें अत्यन्त आसक्त था । किसी समय वह मृगयाके लिये बनमें गया था। उसने वहां एक शिस्त्रातलमर ज्यानावसित मुनिको देखा । इससे उसका मृगया कार्य निष्फल हो गया । वह दूसरे दिन मी उत्त वनमें मृगयाके निमित्त गया, किन्तु मुनिके प्रभावसे फिर भी उसे इस कार्यमें सफलता नहीं मिली । इस प्रकार वह कितने ही दिन यहां गया, किन्तु उसे इस कार्यमें सफलता नहीं मिल सकी । इससे उसे मुनिके ऊपर अतिशय क्रोध उत्पन्न हुआ । किसी एक दिन जब मुनि आहारके लिये नगरमें गये हुए थे। तब अक्षावरने अवसर पाफर उस शिलाको अमिसे प्रज्वलित कर दिया। इसी बीच मुनिराज भी वहां वापिस आ गये और शीघ्रतासे उसी जलती हुई शिलाके अपर बैठ गये। उन्होंने ध्यानको नहीं छोड़ा, इससे उन्हें केवलज्ञानकी प्राप्ति हुई । वे अन्तःकृत् केवली होकर मुक्तिको प्राप्त हुए । इधर ब्रह्मवत राजा मृगया व्यसन एवं मुनिप्रद्धेषके कारण सातवें नस्कमें नारकी उत्पन्न हुआ। तत्पश्चात् बीच बीचमें कर हिंसक तियेच होकर कमसे छठे और पांचवें आदि शेष नरकोंमें भी गया । मृगया व्यसनमें आसक्त होनेसे प्राणियोंको ऐसे ही भयानक कष्ट सहने पड़ते हैं । ६ शिवभूति -- बनारस नगरमें राजा जयसिंह राज्य करता था । रानीका नाम जयावती था । इस राजाके एक शिवभूति नामका पुरोहित था जो अपनी सत्यवादिताके कारण पृथिवीपर 'सत्मशेषा इस नामसे प्रसिद्ध हो गया था । उसने अपने यज्ञोपवीतमें एक छुरी बांध रक्सी थी । वह कहा करता था कि यदि मैं कदाचित् असत्य बोलं तो इस कुरीसे अपनी बिहा काट डालंगा । इस विश्वाससे बहुतसे लोग इसके पास सुरक्षार्थ अपना धन रखा करते थे। किसी एक दिन पसपुरसे एक धनपाल नामा सेठ आर्या
और इसके पास अपने वेसकीमती चार रन रखकर व्यापारार्थ देशान्तर चला गया। वह बारह वर्ष विदेशमें रहकर और बहुत-सा धन कमाकर वापिस आ रहा था। मार्गमें उसकी नाव डूब गई और सब धन नह हो गया। इस प्रकार वह धनहीन होकर बनारस वापिस पहुंचा। उसने शिवभूति पुरोहितसे अपने पार