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अन्धगत वृत्तोंकी संख्या
१.शालविक्रोडित (वृ.र.३-१३६)-२-१, -१२, 11-14, 16, २६, २-11,1,३८-४४,
५२-५६, ५५, ११-१२,६४-६६,६८-५०, ७२,८३,८५,८८, ९०, ९३,९५, ९०,01,0७-१२, ११४,11-२१.१०, ११२,१३-१८, १४-१. १३५-५९. १५२, १५४, १५६-६०, ११२-१३, १९५-40, १९९-७०, १0४-७५, 100, 108-40, १८९-९३, १९५-९६, १९, २५५-५८, २१-४,२९०,२९९, २७१-१२, २७४-01, २८४-८८, २९०-९७, १००, .३-५, १८८-५६, १५९-७९, ४८१-५५०, ५९५-९५, १६०-८१,८०६, ८२१-४७, ८६६ ८७०, ८९५-९१५, ९१८, ९२०-103.९.
इसके प्रत्येक चरणमें मगण, संगम, जगण, सगण, तगण, सगण भौर. अम्तमे वर्ण गुरु होता है। यति १२ और • वर्णोपर होती है। २. आर्या-२४, ६२, ५४, ८, ८५, ९, ९५, १६, १८, १२९, १५३,101, २५३, २८०, २९८, ५९८-१५०, ९८२-०७५, ८५८-१५-104.
इसके प्रथम और हतीय चरणमे १२ मात्रायें, द्वितीय चरणमें १८ तथा अतुर्थ चरणमें १५ मात्रायें होती है (अयोध)। ३. श्लोक (अनुष्टुम् )-14, १२, १५०, २८, २०४-४२, ३९७-१८, ८८०, ८८५-९४=१५३.
इसके चारों चरणों में पांचवां गर्न सम्बा गुरु होता है । द्वितीय व चतुर्थ चरणमें सातवा वर्ण अव होता है(धुतपोध)। ४. बसन्ततिलका (७. र. ३-९६)-1-२५, ५०, ३०, ३, ६७, ८३, ८७, १३, १२५, १३९,
1, ५७३, ८, १९, १९९-२५२, २१५-६६, २९८, २७०, २०१, २९९, ३०६-., १८४-८५, ३८७,४८०, ८१४-५०,८९७-04,006, 6८३3101.
इसके प्रत्येक बरणमें जगण, भगण, जगण, जगण और धम्तमें २ वर्ष गुरु होते है। ५.पंशस्थ (पृ.८३-५९)-41,60, १५९, २.२.-८०५, ८००-३०, ८७६, ९.uata.
इसके प्रत्येक करणमें जगन, तगण, जगण और रगण होता है। ६. रथोडता (पृ.८३-५१)-५५१-१५७४.
इसके प्रत्येक चरणमें रगण, नगण, गण और तत्पश्चात् क्रमसे : मधु व । वीर्य वर्ण होता है। ७. मालिनी (बृ. र. ३-११०)-५, ६, ७, ९, १६, १७, १५-१७, ५७, 2-1, , १२, १०५, १४., 14, २०७-०९, २८९, २६५, ५. २५.
इसके प्रत्येक घरणामें मगण, नगण, मगण, मगण मौर भगण क्या ६ व ७ वर्णोपर पति होती है। ८. स्नग्धरा (पृ. ८३-१४२)-1, १३, १९, २५, .1, ८१, ८५, १०४, ०१, १२५, २८, ११,
1,५५, १६, १९४-१९. इसके प्रत्येक चरण में मगण, (गण, भगम, नगण, और फिर । यगण होते है। पति , * . वर्णोपर