Book Title: Padmanandi Panchvinshati
Author(s): Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 307
________________ २६१ २४. शरीराष्टकम् स्थाज्या सेन तनुर्मुमुक्षुभिरियं युक्त्या महस्या तया मो भूयो ऽपि ययात्मनो भवकते तसनिधिर्जायते ॥ ७ ॥ 922 ) रक्षापोपविधौ जमो ऽस्य सपुषः सर्वः सदैवोद्यतः कालादिष्टजरा करोत्यनुदिनं तार्जर पानयोः। स्पर्धामाभितयोईयोर्षिजयिनी सैका जरा आयते साक्षात्कालपुरासरा यदि तवा कास्था स्थिरत्थे मृणाम् ॥ ८॥ == तनुः । तया महत्या युक्त्या परवा त्याज्या यया युक्त्या भूयोऽपि । भवकृते' कारणाय । आत्मनः । सस्य शरीरस्म । संनिधिः निकरम् । न जायते ॥॥ सर्वः जनः । अस्य वपुषः शरीरमा रक्षापोषविधौ सदा उद्यतः । अनुदिनम् । कालादिष्टजरा कालेन प्रेरिता जरा । तत् शरीरम् । अर्जर करोति । म पुनः । अनयोः जनजरयोः द्वयोः । स्पर्दाम् ईयाम् आश्रितयोः मध्ये यदि सा एका जरा साक्षात् विजमिनी जायते तदा नृणां स्थिरत्ने का आस्था ।सधंभूता जरा । कालपुरुसरा ॥८॥ इति शरीराष्टकम् ॥२४॥ Mन ऐसी महती युक्तिसे छोड़ना चाहिये कि जिससे संसारके कारणीभूत उस शरीरका सम्बन्ध आत्माके साथ फिरसे न हो सके ॥ विशेषार्थ--प्रथमतः लोहको अमिमें खूब तपाया जाता है। फिर उसे घनसे ठोकपीटकर उसके उपकरण बनाये जाते हैं। इस कार्यमें जिस प्रकार लोहेकी संगतिसे व्यर्थमें अग्निको भी घनकृत घातोंको सहना पड़ता है उसी प्रकार शरीरकी संगतिसे आत्माको भी उसके साथ अनेक प्रकारके दुस सहने पड़ते हैं। इसलिये अन्धकार कहते हैं कि तप आदिके द्वारा उस शरीरको इस प्रकारसे छोइनेफा प्रयत्न करना चाहिये कि जिससे पुनः उसकी प्राप्ति न हो। कारण यह कि इस मनुष्यशरीरको प्राप्त करके यदि उसके द्वारा साध्य संयम एवं तप आदिका आचरण न किया तो प्रणीको वह शरीर पुनः पुनः प्राप्त होता ही रहेगा और इससे शरीरके साथमै कष्टोंको भी सहना ही पड़ेगा ।। ७ ।। सब प्राणी इस शरीरके रक्षण और पोषणमें निरन्तर ही प्रयत्नशील रहते हैं, उधर कालके द्वारा आदिष्ट जरा- मृत्युसे प्रेरित बुदापा-उसे प्रतिदिन निर्बल करता है । इस प्रकार मानों परस्परमें स्पर्धाको ही प्राप्त हुए इन दोनोंमें एक वह बुढ़ापा ही विजयी होता है, क्योंकि, उसके आगे साक्षात् काल ( यमराज) स्थित है । ऐसी अवस्थामें जब शरीरकी यह स्थिति है तो फिर उसकी स्थिरतामें मनुष्योंका क्या प्रयत्न चल सकता है । अर्थात् कुछ भी उनका प्रयास नहीं चल सकता है ।। ८ ॥ इस प्रकार शरीराटक अधिकार समाप्त हुआ ॥२४॥ १६ भूयोऽपि वाले संसारको ।

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