Book Title: Padmanandi Panchvinshati
Author(s): Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

View full book text
Previous | Next

Page 318
________________ पचनन्दि-पञ्चविंशतिः 11-1,598 जयति परं क्ष्येऽपि चिदात्मनि १-११०, 110 दुध्यानवियता 1-5, 261 दुर्गारार्जितकर्मकारण- ३-३, 258 बेटा कृतकर्मसिपि ३-१९, 291 दुध बहुदुःस्राक्ष १२-११, 680 दुःखप्राइगजाकीर्णे | दुःखम्पालसमाकु 4-40, 453 1-1, 269 दुःखम्पाक्षसमाकुले दुःखं किंचित् सुसं २३-१०, 904 *-*,381 दुःखे वा समुपखितेऽय ३५, 257 दूरादभीष्टमधिगच्छति १ १८८, 188 इगवगमचरित्राक्षं कुतः १०४, 74 महः - 491 | २७४ तैरेव प्रतिपचतेऽन २२,507 | १०-४८, 595 स्वताशेषपरिग्रहः या दूरं विधुरप्पासो १-१०८, 178 त्यक्त्वा म्यासनवप्रमाण ८- २१, 506 स्या सौ म६-२१, 419 आज्या सर्वा विम्वेति 11 ३५, 632 त्रिभुवनगुरो जिनेश्वर १० - १ त्रिलोककोचरat 858 ११-२४, 830 | कोक्यप्रभावतो १०, 10 कोपानिपतित्व- १८-१ 889 त्रैलोक्ये किमिहास्ति १० ४९, 596 स्वदङ्घ्रिपद्मद्वयभक्ति- १५-२३, 798 त्वमत्र लोकप्रयसनि १५०५ 780 त्वमेव तीर्थ १-२४ 799 वयादिबोधः खलु 1474, 800 यि प्रभूतानि पदानि १५- १३, 788 २००४,861 ९-१९, 526 ६520 त्वं कारुणिका स्वामी स्वामासाद्य पुराकृतेन स्वामेकं त्रिजगत्पि इस मौषधमस्य नैग ३-४८, 300 बुतानन्वमपारसंभूति] ३ १९८, 198 दयानां चि द्वितयं १६-१७, 823 | धनशान चरित्र मूतमष्टभा स्वसमो शेयो दृष्टिमिणतिरश्मा दम निकाय पुंसि दमप्रकाशनमाोभनदानं येन प्रयच्छन्ति दानस्य यस्य न धर्म बानाथ यस्य न समुत्साइते २-३४, 292 दानेनैव गृहस्यता - 18,472 दानोपदेशनमिदं १-५३,251 दारा एव गृई न +4-11, 670 18-94, 677 दारार्यादिपरिग्रहः विडे तुमम्मि दिनानि खण्डानि गुरूणि ३०५०, 302 दिपखीमुखपङ्कजैक- १८०३, 841 दुर्गन्धं कृमिकीटा- २४- २, 916 दुर्गन्धाशुविधा ३- 255 दुर्गन्धाशुविधातुः २४-१, 915 दुर्व्यानार्थमवधकरण- १५३ 58 हास्यविदः देवपूजा गुरूपातिः देवगुरु देवः स किं भवति देवः सर्वविदेष एव देवाराम मपूजनादि वेोऽयमिति मब ६- १०, 426 देशमतानुसारेणं ४-१४, 321 | ५०५२, 250 ६-२, 428 *-*1, 219 दोषामाघुच्य लोके धूतमसिराहा भूतमससुरावेश्या 19-4, 852 १-२२, 418 1-4, 85 १ - १६, 16 E-10, 406 1-11, 31 चूतादर्मसुतः पाहि हादसापि सता विम्याः ६-४२, 438 | द्वैततो द्वैवमद्वैवल ४-३, 888 संसृतिरेव ९-२९ 543 | मरामराही श्वरपीड मे नहं रनमिवाम्बुधौ 4-4, 463 ६-३५ 481 1-61, 81 महा मणीरिव चिरात् नो बस्तुनि द्योभने माकृतिर्माक्षरं वर्णो 6-94, 500 ६-७, 408 | मानश्यति करा१३-१२, 906 | मानाजातिपरि2-14, 216 १८- २, 840 4-7, 465 每 १४-१६,742 - धन्योऽस्मि पुण्यनिकयो इ-फ 7 धर्मोदया गृहस्थधर्मो रक्षति रक्षितः १ -१८२, 182 भिकाम्दा रतनमण्डर्क १ १३२, 162 चिकू तत्पौदवमासतो भूमेधूसरियं निमुक्त 1-2-, 30 4,390 २१-९, 874 ३-५६,737 घर परमाणुलील धर्मशत्रुविनाशार्थं धर्मः श्रीवशमन एष धर्मानमेतदिह माय धर्माधर्मनांसि ६- १३, 409 ३-१९५, 195 १-८७, 87 १०२५,589 धर्मार्थिनोऽपि होकस्य ११, 407 न भ परमियन्ति भवन्ति मनःसमं वधर्म ममत्वं च तदेवेक नमोऽस्तु धर्माच मयनिक्षेपप्रमितिनयप्रमाणादिविधान १-३२, 92 144,781 निर्विण्णोऽहं शिवरां निर्विनाशमणि निश्रमपश्चाशत् निश्चयामगमनस्थिति निखवेन देवम लिखकरशा निलं *-90, 347 14-14, 821 11-4, 651 14-4, 811 14-9, 818 7-44, 372 २-१३ 211 *-1, 204 tkveiusfru 1-141,183 नाममात्रकथा नामापि देव भवतः मामापि यः स्मरति 10-22, 589 *1-8, 869 2-14, 214 भामापि हि परं तस्माद ४-३६, 343 मार्गः पदात्पदमपि निजैर्गुणैरप्रतिमैः २-४३,241 11-,810 नित्यं खावृति इस्तिस्कर १२-४ 668 नित्यानित्यतया महत् 10-2, 549 निश्वशेषयमङ्कुमल २५-१, 986 निरूप्यता स्थिरता निर्मन्यत्वमुदा निर्जरा च तथा कोको निर्जराक्षात प्रोका निर्दोषतचक्षुषा 1-c., 80 22-10, 911 ६-४४, 440 *-42, 449 6-4, 501 २०-२, 859 1-144, 166 २-३५, 233 1-14, 267 16-9, 561 11-41, 658 १०.३०, 57.7 ४-३१ 989 -9, 324

Loading...

Page Navigation
1 ... 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328