Book Title: Padmanandi Panchvinshati
Author(s): Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 316
________________ २७२ पभनन्दि-पाविशतिः अइयोते सति यन्त्र नश्यति ४.५,835 1 कर्म पर कार्य सुस-11-14, 625 या कार्यशतानि -1, 421 उम्मुच्चालाधनावपि १-६२, 62 कर्मबन्धकलितो- १०-, 560 | केपिकिंचित्परिशाम 1-4, 315 उम्मुहिमम्मि तम्मिय 1-14,719 | कर्मभिवमनिशं स्वतो. १०-21, 568 | केपिस्केनापि कारुण्यात् ५-६, 813 उस लिमिः 1-1९1, 194 कर्मभ्यः कर्मकार्पेभ्यः 4-11, 457 | केनापि हि परेण सात् ४-१५, 332 कर्ममलविकरहेतोः १-९८,98 | केमाप्पलिन कार्य. २२-, 898 मसाले म्यादि ... बर्मशुम्माशि- ३४, 581 | वसाहनस्क्सोक्य. -२०, 327 एकस्वसप्ततिरियं सुर- ४-७५, 384 | कर्माधीसविचित्रोषय-1-121,181 | को इह उम्बरंतो 21, 729 एकस्वस्थितये २५.३, 897 बनियानरोधोत्र १-५२, 448 | कोप्यन्धोऽपि -१८९, 189 एकत्वैकपदप्राप्त २१.२, 885 लायेक साधुभवति 14, 36 | शियाकाण्डसंबधिमी २-11,881 एमधुमे निशि सम्ति ३-11,268 | कषायविषयोन्जर- १.९९, 99 ! क्रियाकारकसंबन्ध- 1-14, 345 एकमेव हि चैतम्य -१५, 322 | कटिकारस- १५-1, 854 कोषाविकर्मयोगेऽपि -३५, 342 एकस्यापि ममत्वमात्म- 1.4,43 | काकिण्या भपि संग्रहो, १-१२,42 | यामः किं कुर्मः .-१२२, 122 एकाक्षाकर्मसंवृत- -4, 493 | कादाचिरको १-५१,54 काकीतिक परिव्रता 1.10, 18 एकान्तोदतवाविौमिक 1833 | कामसारममइष्णिमुल्य- २-५,203 बारमा सिष्ठति कीरशः 1-114,135 एकोऽप्यन्त्र बरोति या ..२, 460 कामिन्यादि विनाबदुस १२-१९,678 क्षमस्व मम वाणि स-11,879 एकजन्मफळं धर्मः २२.11,894 | कायोत्सर्गापा -1,1श्रीरनीरवदेखत्र -19,445 एतम्मोहकप्रयोग- 1-11, 119 कार्य तपः परमिह २-२५,223 | तस्मृस्पीह 1-100,177 एतावतेक मम पूर्वत २१-५, 870 |कार्याकार्यविचारशुम्म १२-11,675 एसेनेव विदुतिः ....,534 | कालवे बहिरवास्थिति 1-6, 67 | खगोडों किमुतामलस्य 10-4, 848 एनःस्वावलमोपमोगतः 9-10, 532 | बाहादपि प्रसृतमोह 1-14, 113 खबार व संवरती १३-५०,739 एवं सति पदेवाति ४-५६, 363 | काले दुःखमसंझके जिन-७-२1.479 ! खाविपकनिर्मुक्त -२, 309 एष बीविषये विनापिहि11.10,676 3 कालेम प्रस्त्यं ब्रजन्ति ५-५१, 303 एस जियो परमप्पा १३-१८, 709 कास्था समनि सुन्दरेऽपि 1-44,88 गासागरपुष्करादिषु १-५५, 95 किशाहि समुबलडे १३-५५, 734 | गतभाविभवनाव- 10, 644 ऐश्वर्यादिगुणप्रकाशन- 1-18, 121 किमासकोलाहोरमल- 1-10, 144 गसो ज्ञातिः कविहिरपि १-२०, 20 किंचिस्संसारसंधि २२-1,889 | गाधाकृष्टमधुव्रत- १-४,842 मौदार्ययुक्तममबस- २-५७, 245 कि जानाति न कि ३.१२, 264 गिरा नरमाणिसमेति १५-14,791 किं जानासिन वीतराग-१-८६,86 | गीर्वाणामणिसादिस्वस्थ- ३.३३,285 ऋषा यूकावासा १५ किजीवितेन कृपणस्य २.४६, 244 गुणाः शीलानि सर्वाणि -४२,349 कणयकमलाणमुवरि १३.५४, 725 | किं ते गुणाः क्रिमिह २-१९,217 | गुरूपदेशतोऽभ्यासात् ५-२२, 329 कनि म कति न धारान् ४, 47 । किं से गृहः किमिह ते २.१७, 215 गुरोरेव प्रसादेन ६-१८, 414 कदाचिदम्ब स्वदनुग्रहं १५-11,786 | किं देवः किमु देवता ३-३२, 284 | गुर्वशिद्धयक्तमुक्ति- २३-१६,910 कम्मलकपडले १३.१९, 700 कि बायर्ड परेषु वस्तुषु ५-२७, 541 | गुवी भ्रान्तिरियं जबरव- ३-२४, 276 कायलोयलोयणुप्पल १३-२६, 707 |- किं में करिष्यतः करो -२८, 335 ; प्रामएतरपि करुणा २०-५, 862 करजुबलकमलमउले ११-१९,780 किलोकन किमाश्रयेण १-११९,149 अामान्स प्रजाति यः २-२६, 224 कर्मकलितोऽपि मुक्तः ७१.५९,666 | किलोकन किमाश्रयेण १-२४. 598 ग्रासतदर्धमपि मेय- २-३२,230 कर्मकृतकार्यजासे २१-३०, 627 | कुण्ठासेऽपि वृहस्पति-१५-१1,806 ग्रीष्मे भूधरमस्तकानित- ५-६, 993 कर्मक्षत्युपशान्तिकारण-२३-14,909 | कुर्यारकर्म शुभाशुभं १-१३८,138 कर्म चाहमिति च ये १०.१९, 566 ! कुर्यास्कर्म विकल्पं ११-२३, 633 । चक्षुर्मुल्याहपीककर्षक- २३.१५,908 कर्म म यथा स्वरूप १५-२९, 626 | सापि ताबोधपुटादि १५-16,793 वारि पाम्पमयमेषक- २-५०, 248

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