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पानव पचपियतिः
[2811३५१-- 181) पो नाश गोचर मृत्योर्गतो याति न पास्यति ।
सहि शोक मृते कुर्षन शोभते नेतरः पुमान् ॥ २९॥ 282) प्रथममुदयमुधरमारोहलक्ष्मीमनुभपति व पातं सोऽपि वो दिनेशः।
यदि किल दिनमध्ये सत्र केषां नराणां वससि इदि विषादः सत्स्ववस्थान्तरेषु ॥३०॥ 283) आकाश एष शशिसूर्यमयत्वगाधाः भूपृष्ठ पष शकटप्रमुखाश्चरन्ति ।
मीनादयश्च जल एवं यमस्तु याति सर्वत्र कुत्र भनिनां भवति प्रयकर ॥ ३१ ॥ 284) किं देवः किमु देवता किमगदो विधास्ति किं किं मणिः
किं मनं किमुताश्रयः किमु सुहत् किंवा स गम्भोऽस्ति सः ।
तत्र यममुके। सर्वे जमा गताः । एकः भूतः मन्यस्त किशोरयति ॥२०॥ मात्र संसारे । यः नरः । मृत्योः ममस्म । गोचर न गतः । म पुमान्मृत्योः गोचरं न याति । यः पुमान्मृत्योः गोचर न मास्थति । हि अतः । ७ पुमान् । मृते सति । शोक ऊन् सन शोभते । इतरः यमानीनः । पुमान् । घोकं कुर्वन् न शोभते ॥२७॥ यत्र संसारे । सोऽपि देवः । विनेशः सूर्यः । यदि चेत् । किल इति सो। दिनमध्ये एकदिनमध्ये । प्रथमम् । उौः अतिशयेन । सदयम् मारोहलक्ष्मीम् । अनुभवति प्राप्नोति । र पुनः । पात पतनाम् भनुभवति । तत्र संसारे । सवस्थान्तरेषु सत्सु मृतेषु सत्सु । केया नराणां इदि विषादः वसति । अपि तुम बसति ॥३०॥ शचिपूर्वमसत्वगाया । एक निश्चयेन । आकाशे । घरन्ति गन्ति । शकटप्रमुखाः भूसष्टे । बरन्ति गष्यन्ति । प पुनः
ले चरन्ति गच्छन्तिातु पुनःयमः सर्वत्र याति। भविना जीवाना। प्रयत्नः भवति । मुकि बिना न प्रापि ॥३॥देशः किम अलि। देवता किम अस्ति। अगदः वैद्यः ओषेध या किम् अस्ति। सा विद्या किम् अस्ति। समान किम् अस्ति । स कि मन्त्रम् अस्ति । सत अहो । स आश्रयः किम् अस्ति । स सहन किम् काखे । रा स गन्धः किम् अस्ति।
अवश्यम्भावी है तब एक दूसरेके मरनेपर शोक करना उचित नहीं है ।। २८ ॥ जो मनुष्य यहा मृत्युकी विषयताको न तो भूतकालमें प्राप्त हुआ है, न वर्तमानमें प्राप्त होता है, और न भविष्यमें मी प्राप्त होगा; अर्थात् जिसका मरण तीनों ही कालोंमें सम्भव नहीं है वह यदि किसी प्रिय जनके मरनेपर शोक करता है तो इसमें उसकी शोभा है। किन्तु जो मनुष्य समयानुसार स्वयं ही मरणको प्राप्त होता है उसका दूसरे किसी प्राणीके मरनेपर सोकाकुल होना अशोभनीय है । अभिप्राय यह कि जब सभी संसारी प्राणी समयानुसार मृत्युको प्राप्त होनेवाले हैं सब एकको दूसरेके मरनेपर शोक करना उचित नहीं है ॥ २९ ॥ जो सूर्यदेव एक ही दिनके भीतर प्रातःकालमें उद्यका अनुभव करता है और तत्पश्चात् मध्याहमें अतिशय ऊपर चढ़कर लक्ष्मीका अनुभव करता है वह भी जब सार्यकालमें निश्चयसे अस्तको प्राप्त होता है तब जन्ममरणादिस्वरूप मिन्न भिन्न अवस्थाओंके होनेपर किन मनुष्योंके हृदयमें विषाद रहता है ! अर्थात् ऐसी अवस्थामें किसीको भी विषाद नहीं करना चाहिये ॥ ३०॥ चन्द, सूर्य, वायु और पक्षी आदि आकाशमें ही गमन करते हैं; गाड़ी आदिकों का आवागमन पृथिवीके ऊपर ही होता है; तथा मत्स्यादिक जलमें ही संचार करते हैं । परन्तु यम ( मृत्यु) आकाश, पृथिवी और जलमें सभी स्थानोंपर पहुंचता है । इसीलिये संसारी प्राणियोंका प्रयल कहांपर हो सकता है ! अर्थात् काल जब सभी संसारी प्राणियोंको कवलित करता है तब उससे बचनेके लिये किया जानेवाला किसी भी प्राणीका प्रयत्न सफल नहीं हो सकता है 11 ३१ ॥ यहां तीनों लोकोंमें क्या देव, क्या देवता, क्या औषधि, क्या विद्या, क्या मणि, क्या मंत्र, क्या आश्रय, क्या मित्र, क्या वह सुगन्ध, अथवा क्या अन्य राजा आदि भी ऐसे शक्तिशाली हैं जो सब ही अपने
गच्छन्ति परन्ति ! जनौल।