Book Title: Padmanandi Panchvinshati
Author(s): Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 281
________________ : marwA [ १८. शान्तिनाथस्तोत्रम्] 889 } त्रैलोक्याधिपसिन्वसूचनपर लोकेश्वरैरुद्धत यस्योपर्युपरीन्दुमण्डलांने छनषयं राजते। अश्रान्तोद्गतकेवलोज्वलरुवा निर्भत्सितार्म सो ऽस्मान् पातु निरजनो जिनपतिः श्रीशान्तिनाथः सदा ॥ १॥ 840) वेषः सर्व विदेष पष परमो नास्यत्रिलोकीपतिः । सन्त्यस्यैव समस्ततत्त्वविषया पाचः सतां संमताः। एतद्धोषयतीव यस्य विबुधैरास्फालितो दुन्दुभिः सोऽस्मान् पातु निरञ्जनो जिनपतिः श्रीशान्तिनाथ सदा ॥२॥ 841) दिव्यत्रीमुखपकजैकमुकुरप्रोल्लासिनानामकि स्फारीभूतविचित्ररश्मिरचिताननामरेन्द्रायुकैः। सचित्रीकृतवातवर्मनि लससिहासने यः तिः सोऽस्मान् पातु निरअनो जिनपतिः श्रीशान्तिनाय सदा ॥३॥ 842) गम्धाकृष्ठमधुमतजस्तापारिता कुर्वती। स्तोत्राणीध विधः सुरैः सुमनसा वृष्टिर्यदने ऽभवत् । स श्रीशान्तिनाथः अमान् सदा पातु रक्षतु। किंलक्षणः श्रीशान्तिनाषः। निरभवः। जिनपनि कमीशान्तिी नायस्य । उपर्यपरि छात्रयम्। राजते शोभते । किलक्षणं छात्रयम् । लोक्याधिपवित्वमा , यसपासमामिलायाचनाम् ।। पुनः विलक्षण एवत्रयम् । लोकेश्वरैः उस्तम् इन्द्रादिभिः धृतम्। पुनः किलक्ष पत्रकार इन्दुमाकरिश्माम्बालसदशम् । पुनः किंलक्षणं छत्रत्रयम् । अवान्तम् अनवरतम् । उद्तकेवलोऊवलाषा रीप्ला स्ला नियमित प्रयासपतिसयतेजः॥॥स श्रीशान्तिनाथः। सदा सर्वकाले। अस्माम् पातु रक्षता किलक्षषः शामिान्यामा निसान बिनापति यस्य श्रीशान्तिनाथस्य दुन्दुभिः। विधुधैः देवैः । आस्फालितः ताडितः । एतद्धोषयतीव । मति । एषा श्रीमान्तिमा सर्ववित् । परमः श्रेष्ठ: । त्रिलोकीपतिः। अन्यः म। अस्म श्रीशान्तिनाथस्य । वाचः। स खानाम् ।माअबीघा कथिताः सन्ति । विलक्षणा पाच । समस्ततत्वविषयाः ॥२॥ श्रीशान्तिनाथः समान पनु सात मीशान्ति सिंहासने स्थितः1 किलक्षणे सिंहासने । विख्यत्रीमुखपजेकमुकुरप्रोग्रासिमानामणिसारी नामिविचालिमाविधानमनास्तापाया कृत्वा सचित्रीकृतवात्तवर्मनि कुर्युरीकृत-आकाशे ॥ ३ ॥ स श्रीशान्तिनाथः अस्मान पात रखनु । यो यात्मा शान्तिानास जिस शान्तिनाथ भगवान के एक एकके ऊपर इद्रोंके द्वारा धारण कि ममें चन्द्रमामा के समान तीन छन तीनों लोकोंकी प्रभुताको सूचित करते हुए निरन्तर उदित हनेवाले केवलानरमा निर्मक ज्योतिके द्वारा सूर्यकी प्रभाको तिरस्कृत करके सुशोभित होते हैं वह पापरूप कालिमा महिला प्रीशान्तिनाथ जिनेन्द्र हम लोगोंकी सदा रक्षा करे ॥१॥ जिसकी मेरी देवों द्वारा वादित होकर मानो यही घोषणा करती है कि तीनों लोकोंका स्वामी और सर्वज्ञ यह शान्तिनाथ जिनेन्द्र ही उत्तर देव है और दूसरा नाही है। तथा समस्त तत्वोंके यथार्थ स्वरूपको प्रगट करनेवाले इसीके वचन सम्बनीको अभीष्ट है, दूसरे किसीके भी बचन उन्हें अभीष्ट नहीं है; यह पापरूप कालिमासे रहित श्रीशान्तिनाब जिनेन्द्र हम आगोंकी सदा स्मा करे ॥२॥ जो शान्तिनाथ जिनेन्द्र देवांगनाओंके मुखकमलरूप अनुपम दर्पणमें दैदीप्यमान कक माणियोंकी फैलनेवाली विचित्र किरणोंके द्वारा रचे गये कुछ नम्रीभूत इन्द्रधनुषोंने अाकाशको सनातनताप्पा विचित्र (अनेक वर्णमय) करनेवाले सिंहासनपर स्थित है वह पापरूप कालिमासे रहित शान्तिनाम भामत्यान सदा हम लोगोंकी रक्षा करे.॥ ३ ॥ जिस शान्तिनाथ जिनेन्द्रके आगे देवोंक द्वाखा ज्यापरिता हुई आर्थात एक सचिरीकत।

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