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२१. क्रियाकाण्डचूलिका १-१८, पृ. २४५
दोघोंने जिनेन्द्र में स्थान न पाकर मानो गर्भले ही उन्हें छोड़ दिया है।
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स्तुति करनेकी असमर्थताको प्रगट करके भक्तिकी प्रमुखता व उसका कक
रत्नमकी याचना जापके चरण-कमलको पाकर मैं कृतार्थ हो गया भमान या प्रमादके वक्ष होकर जो हमन भादिके विषय में पराध हुआ है वह मिथ्या हो
सम, वचन, काथ और कृद्र, कारित, अनुमोदनसे जो प्राणिपादन हुआ है वह मिथ्या हो मन, बचन, व कायके द्वारा उपाजित मेरा कर्म आपके पादकारणले नाशको प्राप्त हो सर्वज्ञका वचन प्रमाण है
विषय-सूची
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जिन भगवान्की शरणमें जानेसे संसार मट होता है
मैंने आपके मागे वह बाचाचा केव भक्तिवश की है
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मन, वचन व काकी विकलता से जो स्तुतिमें म्यूनता हुई है उसे हे बाणी ! क्षमा कर १४ यह अभीष्ट फलको देनेवाला किमाकाण्डरूप कम्पका एक पत्र है शिवाकाण्ड सम्बन्धी इस चूलिकाके पढ़नेसे अपूर्ण क्रिया पूर्ण होती है
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२२. एकत्वदर्शक परमज्योतिके कथनकी प्रतिक्षा
जो मामवश्वको जानता है वह दूसरोंका स्व माराष्य बन जाता है
एकत्वका शाता बहुत सी कर्मोसे नहीं डरता है १ चैतन्यकी एकताका शान दुर्लभ है, पर का दाता नही है जो यथार्थ सुख असम्भव है
मोक्षमें है वह संसारमै
गुरुके उपदेशले हमें मोक्षपद ही प्रिय है
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मस्विर स्वर्गसुख मोहोदयरूप विवसे व्याप्त है इस कोकमें जो मामोन्मुख रहता है वह erateमें भी जैसा रहता है
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वीतरागपथमें प्रवृत्त योगी के लिये मोक्षसुखकी प्रतिमें कोई भी बाधक नहीं हो सकता
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इस मामनापद चिन्तनसे मोक्ष मास होता है " धर्मके रहनेपर मृत्युका भी मन नहीं रहता
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'गुक्के द्वारा प्रकाशित पथपर पकने निर्वाणपुर प्राप्त होता है १-११, पू. २५१ कर्मको आत्माले पृथक समझनेवालों को सुख-दुखका विकल्प ही नहीं होता देव व जिनप्रतिमा नादिका माराधन ब्यबहारमागमें भी होता है
२३. परमार्थविंशति
माका मद्वैत जयवंत हो मनन्तचतुश्वस्वरूप स्वस्थताकी बन्दना एकमकी स्थिति लिये होनेवाली बुद्धि भी मानन्दजनक होती है मवीर ऐप नष्ट हो जाती है।
मैं चेतनस्वरूप हूँ, कर्मजनित कोधादि मिश्र है ५ यदि एकत्वमें मन संकर है तो सीम तपके भ होनेपर भी अभी सिद्धि होती है कर्मके साथ एकमेक होनेपर भी मैं उस परज्योतिस्वरूप ही हूं
१-२०, पृ. २५२
हृदयमें गुरुवचनों जागृत रहनेपरमापति छेद नहीं होता
लक्ष्मी मदसे जन्मच राजानोंकी संगति मृत्युसे भी मानक होती है।
फोक
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यदि मुक्तिकी जोर बुद्धि का गई है तो फिर कोई कितना भी कह दे, जसका नहीं रहवा
सर्वशक्तिमान् नात्मा प्रभु संसारको मटके
समान देखता है
मामाकी एकताको जाननेवाला पापसे लिस
नहीं होता
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