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रह समें
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पमनम्ति पञ्चशितिः श्लोक ।
लोक नमुनों और कानोंसे संयुक्त हरेकर भी बम्बे देशातको किस अबस्थामें ग्रहण करना योग्य है . बबाहरे कौन है
२०-21 | उपासकके द्वारा अनुप समातविधान ५ देशात साल का होता है
ती गइलाका स्वरूप भाउ मूल गुणों और बाद उत्तर गुणोंका संदेश २३-२३
देशातीके वेधाराधनादि कार्योंमें दाग प्रमुख है . पों में स्पा करना चाहिये श्रावकको ऐसे देशाविका भाम नहीं करमा
आहारादि चतुर्विध दामका स्वरूप व उसकी चाहिये जहा सम्बसवात सुरक्षित में
भावश्यकता
| सब दामों में समयवाल मुल्य क्यों है भोगोपभोगपनिमाणको विधेयता
पापसे अपार्जित धनका सदुपयोग दाम है - रत्लनमका पालन इस प्रकार करे जिससे जन्मावरमें पात्रों के सपयोगमें मानेवाला बन ही सुखद है १५ तवडाम वृद्धिंगत हो।
पाम परम्पराले मोक्षका मी कारण है -" उपासाचे अथायोग्य परमेष्ठी, रमन्त्रय और उसके पारकोकी बिनध करना चाहिये २९
जिनदानापि बिना गृहस्थाश्रम परपरकी नाम बिनक्को मोक्षका द्वार कहा जाता है उपासकको दान भी करना चाहिये
दाता गृहस्स चिन्तामणि नादिल मे है वामके विमा गृहस्थ जीवन कैसा है
१३-१५
| धर्मस्थितिकी कारणभूत निमातिमा नौर सापर्मियों में वास्सत्यके पिना धर्म सम्भव नहीं है
जिनमवन निर्माणकीमावस्यकता पाके बिना धर्म सम्भव नहीं
मानों के धारणसे साग-मोक्ष प्राप्त होता है २७ दयाकी महिमा
चार पुरुषापोंमें मोक्ष उपादेय व शेष हेप है १५ मुनि और भावकोंके पत एक मात्र पहिंसाकी गणुनचों और महावतोंसे एक मात्र मोक्ष दी। सिद्धि के लिये है
साध्य है वक प्राणिपीमन ही पाप नहीं, बल्कि उसका
| देशमतोड्योतन अपर्वत हो संथप भी पाप है पारह गनुपेक्षानोंका स्वस्थ व सनक चिन्तनकी
८. सिद्धस्तुति १-२९, पृ. १४७
५२-५४ बस मेदरूप धर्मके सेवनकी प्रेरणा
अवभिहानियों के भी माविषयभूत सिद्धोका वर्णन मोक्षमासिके लिये भम्तव मौर बहिस्तत्व दोनोंका ही भाश्रय लेना चाहिये
| नमस्कारपूर्वक सिद्धोसे मंगरूपाचना मामाका स्वरूप उसके चिन्तनकी प्रेरणा
मामाको सम्मारक पयों कहा जाता है बासकासंस्कारके अनुहानसे भतिवाय निर्मल
माठ कौके भयसे प्रगट होनेवाले गुणों का धर्मकी प्राप्ति होती है
निश
काँकी हुनप्रदता ७. देशवतोयोतन १-२७, पृ. १३९ |
२१ जब एकेन्धियादि जीव मी उत्तरोत्तर हीन गर्माधर्मोपदेशमें सबके ही बचन प्रमाण है
माणसे अधिक सुमनले संयुक्त है सम्मष्टि एक भी प्रशंसनीय है,
सब कर्मसे सर्वथा रहित तिर क्यों न न कि मिप्यारधि बहुत भी
__पूर्ण सुख व शामसे संयुक्त होंगे । मोक्ष-पक्षका बीज सम्यग्दर्शन और संसारसमका
कर्मजाय भा भाषिके ममा में सिर सदा बीज मिमावर्शन है
प्रेरणा
२-४