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पालनवि-पशितिः
१५-१.
१०. सदोषचन्द्रोदय १-५०, पृ. १६९ अपरिमित मानिनीय बनेकनर्मात्मक
जिपबर दो मुस्सिी नमिणी इसके शिवे नमस्कार । लिस्पकी महिमा मन सपने मरणके भयले परमात्मामें सित
गुम्ने गरोगन प्रभात पोगतिविका कारण साम्बार परमात्माका केवमाममरण भी बनेकसम्मोंक
पापको गारवा पोशिलाम कौन पोयोको सौर परको समान देखना चाहिये बानी विकारों को देखकर योगी मुन्ध
।
समालोले मोर जात होनेवाला । पानापीका पादसे की गई रमणीयता
होनेपर
योगीका खल्प गुरुके रा उपदिड कपल
मुझे लसीका भव नहीं है | सोधचन्द्रोदय जपर्वत हो
१६-२.
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११. निधयपश्चाशद १-१२, पृ. १८१ निमयज्मोति मर्मत हो मोहम्मकारका नामक गुरु जपतो सबा सुखदुखाम मुक्ति है मुर नास्मयोतिकी उपविध मुडम नहीं है । भारमगोषकी अपेक्षा असा मनुभव और मी
नमानी बामगर को भवन बन प्रतीतिसे रहित सो नाटकके पास जैसे? " मजनमनका कारण बनेकानिक -दकि
बायसे तिलको जानना भास्माकी भनेकास्मिकता
- सामाजिक चेतनाके पानापसे बीच निज सम्मको
माटर लेता है मामलापकी प्रालिका पाव योगीके सुल-पुलकी सपना क्यों नहीं होती . मनकी गतिक निरामय होनेपर भज्ञान बाधक
मही होता रोग और खरा मावि सरीर मामिल है,
नामाके नहीं बोगकी महिमा बामाका रमणीय पद शुद्ध बोध बाल्मबोधल्य वीमें बान करनेसे सम्बन्तर
माना होता है निव-समुद्र तट के समापनसे पोंका संचय
भवस्व होता है सम्बदमनादिरूप रस निमसे कही। सम्यग्दर्शनादिरूप दानोंका पर मुनिकी पति कैसी होती है
३२ समीचीन समाविका का पोगकी परमसे सम्मानवा मक परमात्मबोध नहीं होता तब कही भुखका परिशीकन होता है
। चित्यदीप मोहाग्यकारको का मारता ३. पास शामों में मिलनेवाली बुरि पुराचारिणी
"
म्पबहार और रमका सस्प बसनका प्रपोजन -.. मुल्बसपचार विवरणों के सामनेका उपायभूत होनेसे ही मवहार पूरुम है
" रतत्रका सरूप व उसकी बाबासे अमित्रता 8-10 सम्यगायनाविरूपाणॉकी सफलता सम्पबान विमा साधु में स्थित एसके समान
सिद नहीं हो सकता अशनपतिौन होता है गुडगनशुर नोंका कार्य रामजयकी पूर्णता होनेपर सम्मपरम्परा चाद
नहीं रह सकती पित-पक्के गागका उपाय
कप की मेषज्ञामरूप कातक पास मा । दाता