________________
ओसवाल जाति का इतिहास
मेहता गोकुलचन्दजी और कोठारी केशरीसिंहजी
महाराणा सरूपसिंहजी ने मेहता शेरसिंहजी की जगह देवीचन्दजी के पौत्र मेहता गोकुलचन्दजी को अपना प्रधान बनाया। फिर उनके स्थान पर संवत् १९१६ में कोठारी केशरीसिंहजी को प्रधान बनाया। वि० सं० १९२० में मेवाड़ के पोलिटिकल एजंट ने मेवाड़ रीजेंसी कौंसिल को तोड़ कर उसके स्थान पर "अहलियान श्री दरबार राज्य मेवाड़" नाम की कचहरी स्थापित की और उसमें मेहता गोकुलचन्दजी और पंडित लक्ष्मणराव को नियुक्त किया। वि० सं० १९२६ में कोठारी केशरीसिंहजी ने प्रधान पद से इस्तीफा दे दिया तो उनके स्थान पर महाराणा ने मेहता गोकुलचन्दजी और पंडित लक्ष्मणराव को नियुक्त किया । इसी समय बड़ी रूपाहेली और लांबिया वालों के बीच कुछ जमीन के बाबद सगड़ा होकर लड़ाई हुई, जिसमें लाविया घालों के भाई आदि मारे गये। उसके बदले में रूपाहेली का 'तसवारिया' गाँव लांबिया वालों को दिलाना निश्चय हुआ; परन्तु रूपाहेली वालों ने महाराणा शम्भुसिंहजी की बात न मानी, जिसपर गोकुलचन्दजी की अध्यक्षता में तसवारिया पर सेना भेजी गई । वि० सं० १९३१ में महाराणा शम्भुसिंहजी ने मेहता गोकुलचन्दजी और सही वाले अर्जुनसिंहजी को महकमा खास के काम पर नियुक्त किया। मेहता गोकुलचन्दजी इस काम को कुछ समय तक कर माँडलगढ़ चले गये और वहीं पर आप स्वर्गवासी हुए।
कोठारी केशरीसिंहजी सब से प्रथम संवत् १९०२ में रावळी दुकान (State Bank) के हाकिम नियुक्त किये गये । तदनंतर संवत् १८७८ में आप महकमा दाण (चुंगी) के हाकिम हुए थे। महाराणा के इष्टदेव एकलिंगजी का मन्दिर-सम्बन्धी प्रबन्ध भी आपके सुपुर्द हुआ। आप महाराणाजी के सलाहकार भी रहे। आपकी इन सेवाओं से प्रसन्न होकर महाराणाजी ने आपको नेतावल नाम का गाँव जागीर में इनायत किया तथा स्वयं महाराणाजी ने आपकी हवेली पर पधार कर आपका सत्कार किया। तदनंतर आप महाराणा के द्वारा मेवाड़ के प्रवान बनाए गये और बोरांव तथा पैरों में पहिनने का सोने के लंगर भी आपको बक्षे गये। जिस समय महाराणा शम्भुसिंहजी की बाल्यावस्था में रीजेंसी कौंसिल स्थापित हुई थी उस समय आप भी उस कौंसिल के एक सदस्य थे तथा रेव्हेन्यू के काम का निरीक्षण करते थे।
कोठारी केशरीसिंहजी बड़े स्पष्टवक्ता एवं स्वामिभक्त महानुभाव थे। आपने रीजेंसी कौंसिल के अन्दर रह कर मेवाड़ के हित के लिये कई कार्य किये। आपने कई समय कौंसिल के कार्यकत्ताओं को जागीरें-यह कह कर कि जागीरें देने का अधिकार महाराणाजी को है-देने से रोक दिया। इसी प्रकार के कई कार्यों में मेवाड़ के सरदारों के घोर विरोध का सामना करते हुए आपने मेवाड़ का बहुत बड़ा हित