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श्रोसवाल जाति का इतिहास
भाये। उदयपुर से चलें आने पर उनकी सारी जायदाद जप्त कर ली गई और इनके बाल बच्चों को भी वहाँ से निकाल दिया गया। . जब बीकानेर के तत्कालीन महाराजा सरदारसिंहजी को यह बात मालूम हुई तब उन्होंने रामसिंहजी से बीकानेर आने के लिये बहुत आग्रह किया। मगर रामसिंहजी ने महाराजा को धन्यवाद देते हुए लिखा कि महाराणाजी को मेरी सेवाओं का पूरा ध्यान है, वे मेरे शत्रुओं द्वारा झूठी खबर फैलाने से मुझ पर इस समय अप्रसन्न हैं, तो भी कभी न कभी उनकी अप्रमता दूर होगी और वे मुझे फिर से अवश्य बुलावेंगे। इससे रामसिंहजी की स्वामिभक्ति का गहरा परिचय मिलता है।
जब यह बात महाराणा सरूपसिंहजी को मालूम हुई तब उन्होने मेहता रामसिंहजी को पीछा बुलाया मगर उसके प्रथम ही मेहताजी का स्वर्गवास हो गया।
मेहता रामसिंहजी को महाराणाजी की तरफ से तथा पोलिटिकल एजंट कप्तान कॉव और राविन्सन की तरफ से कई रुक्के और परवाने मिले थे, जो हम इनकी फेमिली हिस्ट्री के साथ देने का प्रयत्न करेंगे। मेहता शेरसिंहजी
महता
मेहता शेरसिंहजी अगरचन्दजी के तीसरे पुत्र सीतारामजी के पुत्र थे। आप भी मेहता रामसिंहजी के समकालीन थे। जब मेहता रामसिंहजी पर महाराणा की नाराजी होती थी तब मेवाड़ के दीवान आप नियुक्त किये जाते थे और जब आप से महाराणा अप्रसन्न हो जाते थे तब महाराणा मेहता रामसिंहजी को अपना दीवान बना लिया करते थे। इस प्रकार करीब तीन चार बार बारी २ से आप दीवान बनाये गये। आप बड़े ईमानदार और सच्चे पुरुष थे। मगर ऐसा कहा जाता है कि प्रबन्ध कुशलता की आप में कुछ कमी थी, जिससे शासन कार्य में आप को विशेष सफलता न हुई। फिर भी आपने उदयपुर राज्य को बहुत सेवाएँ की । आपने कई लड़ाइयों में भी बड़ी वीरतापूर्वक भाग लिया। इन सब का वर्णन हम आगे चल कर इनके परिवार के इतिहास में करेंगे। सेठ जोरावरमलजी बापना .
उदयपुर के ओसवाल मुत्सुदियों में सेठ जोरावरमलजी बापना को नाम भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यद्यपि आप व्यापारी लाइन के पुरुष थे फिर भी राजकीय वातावरण पर आपका और आपके बड़े भ्राता भी वहादुरमलजी बापना का बहुत अच्छा प्रभाव था ।