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। २० ) "निग्गंथाणवा निग्गंथिणवा” “साहुवा साहुणीवा" "भिक्खु वा भिक्खुणी वा” ऐसे लिखा है परन्तु "चैत्यं वा चैत्यानि वा"ऐसे तो किसी स्थान में भी नहीं लिखा है। यदि चैत्य शब्द का अर्थ साधु हो तो चैत्य शब्द का अर्थ स्त्री लिंग में नहीं बोला जाता है तो फिर साध्वी को क्या कहना चाहिए । श्रीमहावीर स्वामीजी के १४००० चैत्य नहीं कहे ! और श्रीऋषभदेवजी महाराज के ८४००० साधु कहे हैं परन्तु ८४००० चैत्य नहीं कहे, इसी प्रकार सूत्रों में कई स्थानों पर आचार्यों के साथ इतने साधु हैं ऐसा तो कहा है परन्तु किसी भी स्थान में इतने चैस हैं ऐसे नहीं कहा, केवल आपने अपनी इच्छा से ही चैस शब्द का अर्थ साधु किया है, सो असन्त ही मिथ्या है, जहां २ चैस शब्द का अर्थ साधु करते हो, सो यदि यथार्थ अर्थ के जानने वाले विद्वान देखेंगे, तो उनको मालूम होजाएगा कि आपका किया हुआ अर्थ विभक्ति सहित वाक्ययोजना में किसी रीति से भी नहीं मिलता है
और जब सर्वत्र "देवयं चेईयं" का अर्थ साधु और तीर्थकर मानते हो तो श्रीभगवतीसूत्र में डाड़ों के वर्णन में भगवान ने श्रीगौतमस्वामीजी को कथन किया है कि जिनदाढ़ा देवताओं को पूजने योग्य हैं। "देवयं चेइयं पज्जु वासामि” इस स्थान में "चईयं" शब्द का क्या अर्थ करेंगे? । यदि साधु अर्थ करेंगे तो यह दृष्टान्त डादों के साथ नहीं आसक्ता, यदि "तीर्थङ्कर" ऐसा अर्थ करोगे तो डाढ़ें श्रीतीर्थङ्करदेव के तुल्य
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