________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
Achar
अहम् पर्युषणा-विचार।
आत्मकल्याणाभिलाषी भव्यजीव निर्मूलता समूलता का विचार छोड़ अपनी परम्परा पर आरूढ़ होकर धर्मकृत्यों को करते हैं, और धर्मिष्ठ पुरुषों को देखकर खुशी होते हैं, तथा त्यागीवर्ग पर प्रेम दिखलाते हैं। किन्तु खेद इतनाही है कि पक्षपाती जन परस्पर निन्दादि अकृत्यों में प्रवर्तमान होकर सत्य धर्म की अवहीलना (तिरस्कार) करते हैं। यह बात क्या शासनरसिकों के मन में सर्वथा अनुचित नहीं मालूम होती ? । वर्तमान समय में केवलज्ञानी अथवा मनःपर्ययज्ञानी की तो बात ही क्या ? अवधिज्ञानी भी कोई दृष्टिगोचर नहीं होता । अवधिज्ञानी भी दूर रहा, मतिज्ञान का भेदस्वरूप जातिस्मरणज्ञानवाला भी कोई दीखता नहीं । रहे केवल क्षयोपशमिकमतिज्ञानवान और श्रुतज्ञानवान् पुरुष, वे युक्ति प्रयुक्ति द्वारा अपने २ मन्तव्य के स्थापन करने के लिये आभिनिवेशिकमिथ्यात्व सेवन करते हुए मालूम पड़ते हैं । सिद्धान्त का रहस्य ज्ञात होने पर भी एकांश को आगे करके असत्य पक्ष का स्थापन
For Private And Personal Use Only