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स.प
६० ज्योतिषचमत्कार समीक्षायाः ।। हतं देख कर पूर्वकाल में भी होते थे।* यह प्रापस्तम्ब पार. स्करादि गृह्यसूत्रों से भलीभांसि सिद्ध होता है। मानवगृह्य. सत्र मनुस्मति से पहिले का बना हुमा ग्रन्थ है। इसी का मा. शय लेकर मानवधर्मशास्त्र बना है। यदि अच्छे मुहूर्त में संस्कारादि करने की रीति उस समय न होती तो गृह्यसूत्रकार लिख देते कि जव चाहो तब विवाह मादि करलो। पर उ. न्हों ने शुभ नक्षत्र तिथि वार शुभमुहूर्त उत्तरायण में शुभका• र्य करना माफ २ लिखा है। ___ रोहिणीमृगशिरःश्रवणशविष्ठोत्तराणीत्युपयमे तथोद्वाहे यद्वा पुण्योक्तम्॥मागृ.सू०७खण्ड
भाषा-रोहिणी मृगशिरा अषणा धनिष्ठा तीनों उत्तरा ये वाग्दान अथवा विवाह के लिये अच्छे हैं"यद्वा पुरायोक्तम्,ज्योतिःशास्त्रोक्त शुभ मुहूर्त नक्षत्रों में विवाह करे। क्योंकि सभी गृह्यसूत्रों का आशय ले कर मुहूर्तग्रन्थ ज्योतिष के बनाये गये हैं। विस्तारपूर्वक यही विषय उन में लिखा है। नौर देखिये मानव गृह्यसूत्र ॥
तृतीयस्यवर्षस्यभूयिष्ठे गतेचूडाःकारयेत् । उदगयनेज्योत्स्नेपुण्येनक्षत्रेऽन्यत्रनवम्याः ॥
खण्ड २१ सू०१ भाषा-तृतीय वर्ष का कुछ अंश शेष रहने पर उत्तरायण शुक्ल पक्ष शुभ नक्षत्रादि में नवमी तिथि को छोड़ कर बालक का चहाफर्म करे, इस से स्पष्ट प्रगट हुभा कि इस के विरुद्ध दक्षिणायन प्रादि में शुभ कार्य करने का बुरा फल होगा। ग्रन्थ.
* ( स० सि० ११ । २२ ) व्यतीपातत्रयंघोरं गण्डान्तत्रित यन्तथा । एतद्भसन्धित्रितयंसर्वकर्मसुवजयेत् ॥ ___ इत्यादि गणित के ग्रन्थों में भी अनेक प्रमाण हैं जिन से मुहूर्तादि स्पष्ट सिद्ध होते हैं ।
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