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उत्तराई-तृतीयोऽध्यायः ॥ मनुष्य तथा पशु पक्षी वृक्ष इन सब के जन्म पत्रों को हम पृथकर बतादेंगे। निम्न लिखित व ते होनी चाहिये ( क ) जन्मपत्र पूरा२ पद्धति का हो, सम्पूर्ण चक्र तथा कुण्डली लिखी हों (ख) इष्ट काल ठीक २ सत्य हो, एक पल का भी फर्क नहीं होना चाहिये ( ग ) मोर पक्षीय गणित अर्थात् ग्रह स्पष्टादि सूर्यमिद्धान्त के अनुमार हों (घ) कोई योग्य पुरुष मध्यस्थ हो जैसे पं० शिवकुमार शास्त्री जी, अथवा महाराज दर्भङ्गाप्रभति ॥ क्योंकि आप की वातों का प्रमाण नहीं ठीक २ वतादेने पर भी दश हजार क्या एक फूटी कौड़ी भी आप नहीं देंगे ऐसा अनुमान होता है।
(२)-तीसरे कोठे से भाई बहिनों का ज्ञान होता है पुरुष ग्रह से भाई, स्त्री ग्रह से वहिन इत्यादि (प० १४३) शनि की दृष्टि है आप कहेंगे कि भाई बहिन कुछ नहीं।।
समीक्षा-तीमरे कोठे से भाई बहिनों का ही नहीं किन्तु कई बातों का विचार होता है “ महोदरीणाम थकिकरागां पराक्रमाणामुपजीविनांच" इत्यादि विना गुरु के और वातें समझ में न आसकी तभी तो श्राप भ्रमजाल में पड़े, शुभ ग्रह की दृष्टि प्रथया युक्त होने से शनिबाला योग भी आप का कट जायगा।
(३)-पृ० १४५-शनिक्षेत्रे यदा भानुर्भानुक्षेत्रे यदा शनिः । सद्य एव भवेन्मृत्युः शंकरो यदि रक्षति ॥ और ( पं०८) तीस वर्ष में दो वर्ष ऐसे होने चाहिये कि जिन में माघ फाल्गुन के । जन्मे हुए सारे पृथ्वी के बालक होते ही मर जांय । कहो तो
ऐसे बालकों को जन्म पत्रियां दिखा दूं । ज्योतिषी कहेगा किसी ग्रह की दृष्टि से ये वासक बच गये क्या ग्रह की दृष्टि ईश्वर की कृपा से बलवान् है ॥
समीक्षाआप के लेख परस्पर विरुद्ध क्यों होते हैं? शुभ ग्रह की दृष्टि से इस योग का कट जाना आप स्वयं लिख चुके
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