Book Title: Murtimandan
Author(s): Labdhivijay
Publisher: General Book Depo

View full book text
Previous | Next

Page 191
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्योतिषचमत्कार समीक्षायाः ॥ और विवाहादि मुहूर्त्त लिखे रहते हैं । जोशी जी महाराज यह फलित नहीं तो और क्या है ? फलित किस पहाड़ का नाम है ? ॥ आप बुद्धिमानों का फलित मानना लिखते ढूंढ़ते हैं । देखिये महाभाष्यकार जैसे ऋषि मुनि फलित को मानते थे क्या वे बुद्धिमान् कुछ आप से कम थे ? ॥ 66 “ उत्पातेन ज्ञाप्यमाने वातायकपिलाविद्यु-दातपायातिलोहिनी । कृष्णा सर्वविनाशाय दुर्भिक्षायसिताभवेत् ॥ ( महाभाष्य ) भाषा - जो पीली विजुली चसके तो अधिक हवा चले लोहित वर्ण की चमके तो गरमी अधिक हो, काली धमकै तो नाश हो श्वेत चमके तो दुर्भिक्ष हो । 29 सुश्रुत अ० ३२ । १५ -- यस्य वक्रानुवक्रगा ग्रहा गर्हितस्थानगताः पीडयन्ति । जन्मक्षं वा यस्योरकाशनिभ्यामभिहन्यते, होरा वा,, For Private And Personal Use Only भाषा – निन्दित स्थान में हो कर वक्रानुवक्र ग्रह जिस के जन्म नक्षत्र अथवा जन्म लग्न को पीड़ित करें । क्रूर दृष्टि से देखें अथवा जिस की होरा को उल्का ( पुच्छल तारा ) शनिश्चर क्रूर दृष्टि से देखे वा घात करे उसे अरिष्ट जानना || पाठक ! बड़े २ ऋषि मुनि वैज्ञानिक विद्वान् सत्ययुग से ज्योतिषशास्त्र को बराबर मानते चले आये हैं। पर जोशी जी महाराज जैसे लोग अपनी हठ ( मम मुखे जिल्हा नास्ति) कहां छोड़ते हैं ? उन को शास्त्रों के वाक्यों की क्या परवाह है ? जो मुंह में आया वह लिख दिया ॥ ॥ इति तृतीयोऽध्यायः ॥ क

Loading...

Page Navigation
1 ... 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206