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ज्योतिषचमत्कार समीक्षायाः ॥
और विवाहादि मुहूर्त्त लिखे रहते हैं । जोशी जी महाराज यह फलित नहीं तो और क्या है ? फलित किस पहाड़ का नाम है ? ॥
आप बुद्धिमानों का फलित मानना लिखते ढूंढ़ते हैं । देखिये महाभाष्यकार जैसे ऋषि मुनि फलित को मानते थे क्या वे बुद्धिमान् कुछ आप से कम थे ? ॥
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“ उत्पातेन ज्ञाप्यमाने वातायकपिलाविद्यु-दातपायातिलोहिनी । कृष्णा सर्वविनाशाय दुर्भिक्षायसिताभवेत् ॥ ( महाभाष्य )
भाषा - जो पीली विजुली चसके तो अधिक हवा चले लोहित वर्ण की चमके तो गरमी अधिक हो, काली धमकै तो नाश हो श्वेत चमके तो दुर्भिक्ष हो ।
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सुश्रुत अ० ३२ । १५ -- यस्य वक्रानुवक्रगा ग्रहा गर्हितस्थानगताः पीडयन्ति । जन्मक्षं वा यस्योरकाशनिभ्यामभिहन्यते, होरा वा,,
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भाषा – निन्दित स्थान में हो कर वक्रानुवक्र ग्रह जिस के जन्म नक्षत्र अथवा जन्म लग्न को पीड़ित करें । क्रूर दृष्टि से देखें अथवा जिस की होरा को उल्का ( पुच्छल तारा ) शनिश्चर क्रूर दृष्टि से देखे वा घात करे उसे अरिष्ट जानना ||
पाठक ! बड़े २ ऋषि मुनि वैज्ञानिक विद्वान् सत्ययुग से ज्योतिषशास्त्र को बराबर मानते चले आये हैं। पर जोशी जी महाराज जैसे लोग अपनी हठ ( मम मुखे जिल्हा नास्ति) कहां छोड़ते हैं ? उन को शास्त्रों के वाक्यों की क्या परवाह है ? जो मुंह में आया वह लिख दिया ॥ ॥ इति तृतीयोऽध्यायः ॥
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