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प्रश्नोत्तर जसे कोई ज्येष्ठ के महीने में शीत देश के रहने वाले मनुष्य से कहै कि उमादेश में इम वीच मत जाना मर जानोगे, तो उप का यह प्राशय नहीं होगा कि जुरुवा देश में जाते ही राम नाम सत्य की नौबत हो जायगी, कटकन भी साथ ले जाना, अभिप्राय यह हुआ कि गर्मी में सख्त तकलीफ मिल्नेगो मृत्य तुल्य कष्ट होगा, स्वास्थ्य बिगड़ जायगा, इस लिये शीतकाल में जाना ॥
इसी प्रकार "पृष्ठ चन्द्रे भवेन्मत्यः" इत्यादि समझना चा. हिये। यदि अरिष्टी ग्रह को दशा उन अवमर पर आई हुई होय तो, निषिद्ध मुहूर्त में यात्रा करने से अवश्य मृत्यु भी हो जाय, शुभ दशा में भी दुष्ट मुहर्त में यात्रा करने वाले को दुःख अनेक प्रकार के उम यात्रा में भोगने पड़ेंगे। अत एव शुभ दशा तथा उत्तम मुहूर्त में यात्रा करने का शास्त्र में उपदेश है ।। ___" वारेचोपचयावहस्य सदशास्विष्टं प्रयाणं जगुः। कर्णान्त्यादितिभद्वि केषु मृगमेत्राऽर्कषु नोजन्मभे, इति मु० मा० या० प्र० श्लो १॥
सभी नास्तिक हिन्दू वरावर इसी कारण पूर्वकाल से मुहूर्त, शुभकार्य यात्रा आदि के करते तथा मानते चले आये हैं। भगवान् रामचन्द्र ने लंका यात्रा करते समय सुग्रीव से कहा था कि इस मुहूर्त में चलने से विजय होगा वाल्मीकि रामायण में साफ लिखा है अस्मिन् मुहूर्त सुग्रीव प्रयाण मभिरोचय” । इत्यादि ॥
कोई आवश्यकीय वा पराधीन कार्य अथवा संकट प्रा. जाने पर ग्रीन काल में भी उष्णा देश में जाना पड़ता है। कभी ऐसा अधमर भी ना पड़ता है कि जहां प्लेग फैला हो, महामारी से जो शहर खाली हो गया है वहां भी किसी कार्य या जाना पड़ता है । इसी प्रकार आपत्ति काल मा जाने पर "ब्रह्मवाक्यं जनार्दनः" इत्यादि मतानुसार गणेश रूपी परमात्मा का ध्यान वा प्रार्थना करके गुरु तथा ब्राह्मणों की
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