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वा रोग तन के पीछे २ बराबर लगा रहता है ठीक २ साम्य हो जाने से प्रीति पूर्वक प्रानन्द अथवा सुख से उन का जीवन व्यतीत होता है । अतएव साम्य की आवश्यकता उन के लिये भी हुई, और जिन का पूर्ण वैधव्य योग होता है उन के साम्य ही में गड़बड़ पड़ जाती है या तो घर के लोग वि. चाह रुक जाने के भय से कुण्ड नी बदल कर अच्छे ग्रह बना देते हैं। अथवा धींगा धींगी करके विना ठीक २ साम्य किये विवाह करा देते हैं। विवाह होते ही वे कन्या पूर्वकर्मानुसार विधवा हो जाती हैं ।
पति प्रति कूल जन्म जहं जाई । विधवा होइ पाय तरुणाई ॥
ऐमी विधवानों के ग्यारह घार क्या हजार वार भी विधवा विवाह करोगे तो फिर भी विधवा हो जायगी और नियोग करने वाले दोस्त भी प्लेग में धड़ाधड़ उड़ते जायंगे। बाबू सा. हब! शक्त योग और ठीक साम्य न होने के कारण प्रायः वि. धवा होती हैं। तीसरे दर्जे के ग्रह जिन के होते हैं अर्थात् सौभाग्य तथा वैधव्य के मिले हुए उनके लिये खासकर साम्य की अधिक मावश्यकता है।
इति ॥
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