Book Title: Murtimandan
Author(s): Labdhivijay
Publisher: General Book Depo

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Page 190
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तराई-तृतीयोऽध्यायः ॥ चाहिये ?। खव यवन २ रटते हुए दुनियां भर को यवन ही करना निश्चय किया होगा! वेद में "शतं जीमेव शरदः शतवंशणुयाम शरदः, इत्यादि अर्थात् हम सौ वर्ष तक जीवें सौ वर्ष तक सुनैं इस प्रकार के अनेक मन्त्र हैं। बस कह दो इस वेद से हमें क्या लाभ हुआ ?। सन्ध्या में नित्य इस मन्त्र का पाठ करते २ सैकड़ों हिन्दू दयानन्दी १०० वर्ष से पहिले मर गये अन्धे और बधिर भी हो गये। केवल ज्योतिष के निषेध से प्रयोजन सिद्ध नहीं होगा। ___ जोशी जी ? उपोतिष शास्त्र से बड़े २ लाभ हुये इसी शास्त्र से इस देश की उन्नति हुई जब से इस का लोप होने लगा। तब से देश की दुर्दशा प्रारम्भ हुई । ओर नास्तिकता फैलने लगी विधवा अधिक होने लगीं । नाम मात्र की जन्मपत्री अाजकल कन्यानों की वनायीं जाती हैं। इष्ट काल ठीक नहीं होता यही रांड रंडुवा अधिक बढ़ने का मूल कारण है। १२ अंगरेजों ने ज्योतिष की प्रशंसा क्यों न किई। भास्कराचार्य वापदेव शास्त्री पं० सुधाकर द्विवेदी जी ने झूठा कहा। समीक्षा-जोशी जी : यह पुस्तक आपने होली के दिनों में तो नहीं लिखी ? क्योंकि भांग पीने का सन्देह होता है। पहिले आप स्वयं लिख चुके हैं कि २।१ विलायत के अंगरेज भी ज्योतिषी हैं और पृ० ४४ में कर्नल अलकाट और ऐनीवैसेन्ट के कारण फलित को जड़ हरी हुई। नाप लिख ही चुके हैं फिर अंगरेजों ने प्रशंसा न किई यह लेख यहां पर फिर क्यों लिखा है। इसीप्रकार पूज्यपाद भास्कराचार्य जी तथा वापदेव जी का नाम प्राप वार २ क्यों लिखते हैं ? ॥ शिर अरु शैल कथा चित रहई । ताते वार वीस तें कहई ॥ पूवार्द्ध में द्विवेदी जी का फलित मानना हम सिद्ध कर चुके हैं जिन को कुछ भी सन्देह होवे उन का पञ्चाङ्ग वे महाशय मंगा देखें । राजा मन्त्री संवत्सर के फल आय व्यय चक्र For Private And Personal Use Only

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