Book Title: Murtimandan
Author(s): Labdhivijay
Publisher: General Book Depo

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Page 188
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तराद्ध-तृतीयोऽध्यायः॥ ममीक्षा-आप तो अंक शास्त्र के शत्र हैं भला आप इन बातों को क्या समझते । पहिले कोठ से रंग नहीं किन्तु कद बतलाया जाता है। रंग तो चन्द्रमा के नवांशेश के अनुसार " चन्द्रसमेतनवांशपवर्णः " बतलाते हैं रहा रूस और यूरोप का फल मो पाठक महाशय ! इस श्लोक का अभिप्राय कुरूप है या रूपवान् इस बात को निश्चय करने का है। क्या वि. लायत में कोई कसप नहीं होते। साहब लोग अच्छी खवसूरत मेमों को विवाह काने के किये क्यों ढूंढते हैं। एक का हाथ पकड़ लेते क्योंकि वहां तो सभी गोरी होने से रूपवती होनी चाहिये थी सो बात नहीं है। ज्योतिष शास्त्र का वि. चार देश काल के अनुमार करना कहा है। ___ “लोकाचारंतावदादौ विचिन्त्य, देशेदेशे यो स्थितिः सैव कार्या। लोकेऽपीष्टं पण्डिता वर्ज यन्ति दैवज्ञोऽतोलोकमार्गेणयायात्” (राजमार्त०) ___इस के अनुमार रूस जर्मन अमेरिका आदि के किसी मनुष्य का जन्मपत्र लाइये हम वतादेंगे कि इस का रूप अच्छा है अथवा बुरा गौरारंग प्रधान होने पर भी यह अधिक गोरा है यह पीतवर्ण अथवा रक्तवर्ण लेकर गोरा है अथवा दू. वा श्याम वर्ण लेकर है इत्यादि यही उत्तर हवासियों का भी समझो उस देश के अनुसार उनका भी ठीक २ ज्ञान हो सकता है। ६-रांड़ स्त्रियों के विषय का उत्तर पूर्व दे दिया है। जो आपने लिखा है कि वैधव्य योग वाली सुहागिन और सुहा. ग के योग वाली विधवा हैं सो ठीक नहीं, उन स्त्रियों के इष्ट काल अवश्य ग़लत होंगे जिन के ऐसे उलटे योग आपने देखे होंगे अथवा यह वात भाप की बनावटी गलत है । जोशीजी! यह तो कहिये कि जो कुराष्ठलियां आपने बटोर रक्खी हैं उन के योग किसी पण्डित ने विचारे या प्राप ही ने अपनी बुद्धि के घोड़े दौड़ाये हैं। For Private And Personal Use Only

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