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उत्तर- चतुर्भेऽध्यायः ॥
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करते हैं । तब राहु मंगल की पूजा से प्राप क्यों घड़ाये क्योंकि ग्रहों को तो भगवान के शरीर भीतर ही माना गया है। कालात्मा दिनकृन्मनस्तुहिनगुः सत्वं कुज ज्ञोगिरो जीवीज्ञा सुखे सितश्च मदनो० । इत्यादि
वृ० जा० ॥
ग्रहों की पूजा साक्षात् जगदीश्वर की पूजा है इनी लिये यज्ञादि में प्रथम ग्रहों की पूजा होती है यज्ञोपवीत में ग्रहयाग पहिले किया जाता है हवन में भूः स्वाह । इदमये । भुवः स्वाहा इदं बायये । स्वः स्वाह । इदथं सूयय। तीसरी ति कालात्मा सूर्य भगवान के नाम से ग्रहों को दिई जाती है । जोशी जी ! छाब छाप एक नई पद्धति भी बना डालिये क्योंकि हमारी पद्धति ( दशकम ) तो ग्रह पूजा ग्रहयाग युक्त होने से काम की नहीं रही। और दयानन्दी संस्कार विधि से काम चला लेते तो प्राप कहते हैं मैं नमाजी समाजी नहीं हूं । तो कहिये आप के जो बाल बच्चे होंगे उन के संस्कार क्या ज्योतिषचमत्कार से होंगे ? या कोई नयी पद्धति वनैगी । छाप ने लिखा है कि ज्योतिष घोर नास्तिकता का मूल है। इन हिसाथ से ज्योतिष के मानने वाले लोग अर्थात् सभी हिन्दुमात्र नास्तिक हो गये, तो आप का नाम होडाचक्र से रक्खा गया यज्ञोपवीत में ग्रहयाग भी कराया होगा आप के पूर्वज तो नास्तिक नहीं है? | कहिये आपका मत क्या है। धन्य हो दुनियां भर को नास्तिक बना दिया । भगवान् शंकराचार्य जी के वाद प्रास्तिक धर्म फैलाने को जोशी जी का ही जन्म हुआ है ॥
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ज्यो० च० पृ० १५० पं०५- अंगरेज लोग नित्य प्रार्थना करते हैं कि हे ईश्वर आज की रोटी हमें दे उन को रोटी भी मिलती है और मक्खन भी, हिन्दू निर्वाण की इच्छा करते हैं अकाल महामारी से पूरा २ निर्माण हो रहा है ॥ -
समीक्षा - लीजिये वेदान्त की भी मरम्मत कर डाली, जिन को मक्खन तथा रोटी का टुकड़ा ही दृष्टि पड़ता है ऐसे लोग
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