Book Title: Murtimandan
Author(s): Labdhivijay
Publisher: General Book Depo

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Page 184
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तराई-द्वितीयोऽध्यायः ॥ श्व पार्थिनः, पांच ग्रह जिस के उच्च के पड़े हों उस को आप दरिद्री मिटु कर दीजिये। भगवान् रामचन्द्र जी की इस पुस्तक में कराडली लिखी है उम का नाम निकाल दीजिये " शनि यदा भानः ” के अतिरिक्त और भी कोई श्लोक याद है या नहीं ? ॥ ___ज्यो० च०प० १३३-जिस के 9। ६।१२ वां लान में मंगल हो ऐसो कन्या को मंगली कहते हैं । यह दूसरे विवाह में चढ़ाई जाती है। समीक्षा-मंगनी कन्या दारह योग वालों को व्याही जा. ती हैं जो नव युवक हों, दूसरे विवाह में विना नंगली भी व्याही जाती हैं। क्योंकि यह सब भाग्यानुसार हैं नहारानी सुमित्रा तथा सत्यभामा के क्या ६वां नंगल ही था क्यों दू. सरे विवाह में व्याहीं गयीं। ___ज्यो० च० पृ० १३५ से १४३ तक प्रसस्यता सहित निरर्थक वाते भी हैं । “यथा पृ० १३१ में मेरे जीवन समय में ही ज्योतिष नहीं रहेगा। पृ० १४२ पं० ११ में इतना धन कमाते हैं तो भी इन के मन्तानों को भीख मांगते ही देखा। पृ० १४३ ५० ९ में” मात साठ वर्ष तक संस्कृत पढ़ते हैं फिर मुहूर्त चिन्ता मणि ग्रहलापत्र सारावली इत्यादि रटते २ मर जाते हैं” ॥ ____ समीक्षा-जोशी जी ने अपने जीवन समय में ज्योतिष का लोप होना तो लिखा है परन्तु अपना जीवन समय क्यों नहीं लिखा? किती से मर्यादा गिना लेते । और जो भीख मांगते ही देखा इत्यादि लिखा है सो पाठक ! यही तो जोशी माहब ने निघड़क कलम चलाई है । भला किस ज्यो. तिषी विद्वान् को तथा उन को सन्तान को आपने नंगे पांव भीख गांगते देवा ? । दूर न जाइथे आप के पहाड़ी ज्योतिषी पण्डितों की बात कहता हूं देखिघे माला के पं० नीलाम्बर जोशी जी, वालियर के पं विष्णदत्त जोश जी, टिहरी के For Private And Personal Use Only

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