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ज्योतिषचमत्कार समीक्षायाः ॥ जोशी साहब ने यवनों से इस का रचना बताया है, ठीक है कि इन विचारों को इतिहाम पुराण पढ़ने सुनने का अवसर कहां से गिला होगा । यदि रामायण के दर्शन किये होते तो यवनों का नाम क्यों लिखते ? ॥
अपने शास्त्रों से परिचय न होने के कारण यही दशा होती है कि वाल्मीकीय रामायण तो दूर रहा युरन सीकृत रा. मायण भी आप पढ़ लेते तो यवनाके पास क्यों जाना पड़ता। लक्षण तासु विलोकि भुलाने । हृदय हर्ष नहि प्रगट वखान ॥ जो यहि वरै अमर सोहोई। समर भूमि तेहि आत न कोई॥बा०मा०
प्रश्न-जन्मपत्र का वनाना आपने किसी पुराना से सिद्ध नहीं किया। क्योंकि जोशी जो सनातनधर्मी हारभक्त होने के कारण पुराणों को मानते हैं ॥
उत्तर-जोशी जी ने पुराणों का दरोगा बड़े वढ़ों को बना दिया। यदि सत्यनारायण की कथा सुनने का भी क. भी उन्हें अवसर मिलता तो जन्मपत्र की शका नहीं रहती "लेखयित्वा जन्मपत्री नाम्ना चक्र कलावती” । और रामायण के अनुमार रामचन्द्रजी के जन्म समय के ग्रहों का तथा ति. घि नक्षत्रादि का वर्णन हम पूर्वार्द्ध में लिख चुके हैं । जन्मपत्र न बनाकर सम्बत् मास तिथि नक्षत्र ग्रह बार इत्यादि का जान किस प्रकार होगा, जन्म दिवम क्या श्राप के ज्योतिष चमत्कार से विदित होगा ? । धन्य हो जन्म तिथि भी मेटना चाहते हो?॥
प्रश्न-नाम कर्म संस्कार में ( होडाचक्र ) जन्म नक्षत्र के अनुसार नाम रखना यवनों ने चलाया होगा जब पूर्वकाल से प्रचलित है तो किसी प्राचीन आर्ष ग्रन्थ का प्रमागा दो। हम सनातन धर्मी हैं। ___ उत्तर-मानवगृह्यसूत्र देखिये, खं० १८ सू० २ “देवताप्रयं नक्षत्रानयं देवतायाश्च प्रत्यक्ष प्रतिषिद्धम्"
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