Book Title: Murtimandan
Author(s): Labdhivijay
Publisher: General Book Depo

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Page 177
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८२ ज्योतिषचमत्कार समीक्षायाः ॥ इसीप्रकार महाभारत में युद्ध के समय भगवान् कृष्णचन्द्र जी से अर्जुन ने कहाथा कि हे केशव ! मेरे हाथ से गाण्डीव धनुष गिरा पड़ता है और शकुन भी विपरीत जान पड़ते हैं " निमित्तानिचपश्यामि विपरीतानिकेशव ! ” और युद्धकाण्ड के २२ वें सर्ग में श्रीरामचन्द्र जी ने लदमण जी से कहा है कि हे भाई लक्ष्मण जी ! संसार के नाश करने वाले लक्षण दिखाई पड़ते हैं। काक, गद्ध, शगाल अशुभ सूचक शब्द करने लगे हैं। भयंकर वायु, उल्कापात, भूनिकम्प, इत्यादि दुःशकुन देखने से ज्ञात होता है कि ऋक्ष वानर तथा राक्षसों का भयंकर युद्ध हो कर अवश्य नाश होगा । मोः ! देखो वृक्ष पर्वत विना वृष्टि तथा वायु के टूट रहे हैं। इत्यादि श्लो० १-से ११ पर्यन्त २२वें सर्ग में देखिये ॥ निमित्तानिनिमित्तज्ञो दृष्ट्वालक्ष्मणपूर्वजः । सौमित्रिपरिष्वज्य इदंवचनमब्रवीत् ॥ १॥ लोकक्षयकरभीनं भयम्पश्याम्युपस्थितम् । निवर्हगंप्रवीराणा-पृक्षवानररक्षसाम् ॥ ३॥ वातावकरपावान्ति कम्पत्तेचवरन्धरा। पर्वतावाणिवेपन्ते पतन्तिदमहीरुहाः ॥ ४॥ काकार नास्तथानीय-धाःपरिपतन्ति च। शिवाश्याप्यशुमान्नादा-सदन्तिसुमहाभयान् ११ जब कि बाल्मीकीय रामायक्ष से प्रार्षग्रन्थ में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् रामचन्द्र जी का शाकन इत्यादि मानना साफ साफ लिखा है। लब हमारे जोशी जी जैसे,शास्त्रानभिज्ञ लोगों का प्रलाप कौन भास्तिक बुद्धिमान् हिन्दू सुनेगा ?। उपरोक्त प्रमाणों से भलीभांति इस विषय का पुष्ट समाधान हो गया। आशा है कि समो आर्य सनातनधर्मावलम्बी अपने पूर्वजों की भांति शकुन इत्यादि सभी विषयों में पूरा २ विश्वास रक्खेंगी। For Private And Personal Use Only

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