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उत्तागडे-प्रथमोऽध्यायः ॥ स्वाहा, सर्वपापशमनाय स्वाहेति ब्याहृतिभिहृत्वाऽथ साम गायेत् ।
भाषा-जिप के गौ स्त्री भैम वकरी घोड़ी उष्टी के हीनाङ वा अधिकार विकृत रूप असंभव बच्चा उत्पन्न हो वा अचल पदार्थ चलायमान हो तो महान् उत्पात समझो । तच्छ मनार्थ शिव जी के पांच नामों से घताहुति देवै तो शान्ति हो॥ ___ पाठकगण ! इस प्रकार की अनेक शान्ति वेद ब्राह्मणादि में विद्यमान हैं कश्च विचार इस का पूर्वार्द्ध में भी लिख चुके हैं । स्थानाभाव से अधिक नहीं लिखते जो महाशय दे. खना चाहे वह विस्तारपूर्वक मामवेद के षड्विंश ब्राह्मण में खं० ३ से १२ खराड तक देख लेवें।। जिन लोगों ने ब्राह्मण गृह्यसूत्रादि वैदिक ग्रन्थों का कभी नाम भी न सुना होगा दर्शन तो दूर रहा। इस प्रकार के बाब लोग हिन्दुधर्म की मभी बातों को मूर्ख कहानत, कहैं तो क्या प्राश्चर्य है ! क्योंकि तमाम अवस्था उल्ल की गोल गोल भांख होती हैं। कुत्ते की दुम टेढ़ी होती है इत्यादि र. टते २ जो लोग समय बिता चुके हैं। उन की समझ में हिन्दू सनातनधर्म की फिलोसफी कम पाती है। हिन्दुधर्म मनुष्य को बुद्धि की कमौटी है। निर्बुद्धि लोगों को उस के द्वारा अच्छी जांच हो जाती है ॥
अब यहां से वाल्मीकीय रामायण के अनुसार शकुनादि के द्वारा शुभाशुभ का ज्ञान होना सिद्ध करते हैं। जिस समय भगवान् रामचन्द्र जी महाराज ने लंका को प्रस्थान किया था। उस समय सुग्रीव से कहा था कि हे सुग्रीव ! मुझे शकुन शुभ जान पड़ते हैं। अवश्य रावण को मार कर जानकी जी को हम लावेंग॥ निमित्तानिचपश्यामि योनिप्रादर्भवन्ति । निहत्यरावणसंख्ये ह्यानयिष्यामिजानकीम् ॥
वा० रा० यु० का० ४ स० ७ श्लो०॥
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