Book Title: Murtimandan
Author(s): Labdhivijay
Publisher: General Book Depo

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Page 178
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तराई-प्रथमोऽध्यायः ॥ सामुद्रिक विद्या जिस का आज कल विलकुल लोप हो गया है। केवल दो चार रेखा याद करके दो च पैसे मांग खाने वाले लोगों ने हाथ देखने का चार्ज ले कर इस विद्या का अनादर करा दिया है। पूर्वकाल में इम का कैसा प्रचार था सो वाल्मीकीयरामायण से दिखाते हैं। जिस समय रावणा ने रामचन्द्र जी तथा लक्ष्मण जी को युद्ध में मूर्च्छित कर दिया था, तब नीता जो यो पुष्पक विमान में चढा त्रिजटा के साथ राममि में भेजा और यह कहा कि हे सीते ! अब तूं देख रामचन्द्र जी मारे गये हैं। उस समय श्री महारानी जानकी जी ज्योतिषियों के वाक्य याद करके विलाप करने लगी कि हाय ! मेरा विधवा योग किसी ने भाज तक नहीं घत लाया था। केश रोम जंघा दांत के चिन्ह तो मेरे सब उत्तम सौभाग्य बढ़ाने हारे थे ॥ उक्तञ्चभरिनिहतंद्रष्टा लक्ष्मणंचमहा विललापसीता करुणंशोककर्षिता ॥१॥ इमानिखलुपमानि पादयोबकुलस्विरः । अधिराज्यभिषिच्यन्ते नरेन्द्र पतिभिःसह ॥२॥ वैधव्यंयान्तियानायोऽलक्षणैर्भाग्यदुर्लभाः । नात्मजस्तानिपश्यामि पश्यन्तीहतलक्षणा ॥१॥ सत्यनामानिषदमानि लोणामुक्तानिलक्षणे । तान्यद्यनिहलेराने वितधानि भवन्ति मे ॥८॥ केशाःसूक्ष्मा:समानीला अवौचासंहलेमम । वृत्तेचारोमकेजधे दन्तायविरलामम ॥ ८ ॥ यु० का० स०४८ पाठक ! महारानी जानकी जी के इन वाक्यों से सामु. द्रिक इत्यादियों की प्राचीनता कैसी साफ झलकती है ! पर For Private And Personal Use Only

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