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Achan
उत्तरार्द्धभूमिका ॥
पाठकग ! ज्यो० ० के द्वितीय भाग में पृ० से ७५ तक राशि नक्षत्रादि का कइ २ वर्णन तथा फलित की मोटी २ बातें लिखी हैं। और हेडिंग लिखा" जो फलित को प. दना चाहें योवृध भाग को पढ़ें, अन्य छोहदें,-अस्तु इस भाग की मालोचना नहीं लिखी, जहां कहीं खण्डम करने योग्य इस में स्थल होगा उसका खगान भी इस पुस्तक में भन्यत्र हो जायगा ॥ ___तीसरे भाग में पृ० ७६ से १०८ पर्यंत नरपशु और वन्देदीन, रामानन्द इत्यादि नाम देकर निरर्थक गडबड़ा व्यास लिखा है। क्योंकि न तो नाटक के तर्ज में है और न उपभ्यास के तर्ज पाल रस कुछ ठीक न होने के कारण गहबड़ा न्यास नाम इस ऊटपटांग लेख का ठीक है ॥
पाठक ! इस उपन्याम वा गड़बड़ा न्यास के उत्तर में तुपन्यास वा कोई शुद्ध लेख लिखना सभ्यता के विरुद्ध है इन मिरर्थक वातों को लिख कर अपने पाठकों का समय नष्ट नहीं करते । पृ० १०० से पालोचना प्रारम्भ की जाती है बड़े २ ग्रन्थों के पुष्ट प्रमाण लिख कर सामुद्रिक इत्यादि की माधीनता सिद्ध करते हैं।
ह०-रामदत्त ज्योतिर्विद ॥
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