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षष्ठोऽध्यायः॥ उक्तन-दशभेदंग्रहगणितंजातकमविलोक्य निरोक्ष्यशेषमपि। यःकथयतिशुभमशुभंतस्यनमि थ्याभवेद्वाणी ॥ ____ जो ज्योतिष के अान्तरिक शत्र हो, एक भी ग्रन्थ किसी विवाद से न प फनादेश की रेन दौडाने में तो लन की बाशी कभी गत्य होती है? नहीं २ कदापि नहीं ॥ ज्योतिष चमत्कार का प्रथम भाग ममाप्त हुभा ॥ इम भाग में जोशीजी का विशेष जोर पासमका सपडन दूढना से हो सका सभी धि. षप वेद ब्राह्मण गृह्यसूत्र स्मृति प्रतिहाम ज्योतिष के सिद्धान्त ग्रन्थों से मिट्ट कर दिये हैं। मैंने जो कुछ लिखा है वह ममातम धर्म सथा हिन्दु शास्त्रों के अनु कल लिखा है। निष्पक्ष धि द्वान् महाशय ज्योतिष नमस्कार की पुस्तक से से मिलाकर सत्यासत्य का निर्णय करें "ज्योतिष चमत्कार समीक्षा, यह पुस्तक सनातन धर्म का प्रकाश फैलाने के हेतु लिखी गयी है। मैं पाशा करता हूं कि विचारशील विद्वान् रस के पाठ से समतर होंगे। जोशी जी के कुतकों के कारण लिन लोगों को हिन्द ज्योतिष में शंका उत्पन्न हुई होंगी और रजस्वला होने के ती. नवर्ष उपरान्त कन्या का विवाह तथा मौसेरे भाई बहिनों के विवाह का समर्थन इत्यादिधर्म को दुबाने वाली बातें लिपकर जोशी जी ने जो अन्धकार फैलाना चाहाथा सो नष्ट हुआ। कुतकों का खराडन और दूढ समाधान हो जाने से धर्म की बुर द्धि होगी। लवनिमेष परिमाण युग वर्ष कल्पशरचण्ड । भजसिन मन तेहिराम कहंकाल जासुको दण्ड ॥
--- (*) ओं शान्तिः ३ (*)---- कपिल देशान्तर्गत षष्टिखात मिबासी पं० हरिदत्त ग. पाकात्मज रामदत्त ज्योतिर्वित्कृतं ज्योतिषचमत्कार समीक्षायाः पूर्वार्द्ध समाप्तम् ॥
॥ शुभम्भवतु ॥
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