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६८ ज्योतिषधमत्कार समीक्षायाः ॥ ज्योतिष विद्या से बनाया था इसे तो आप स्वयं मानते हैं। कहिये यह प्रश्न विद्या नहीं तो कौन विद्या थी। इसी प्रकार महाभारत के समय धृतराष्ट्र के पाम बैठे २ संजय सारे समा. चार कुरुक्षेत्र के जान कर धृतराष्ट्र को सुनाते थे। महाशय जी! यह प्रश्न विद्या थी अथवा टेलिग्राफविद्या । इसी पृष्ठ में भाप फरमाते हैं कि जैमिनि महाराज ने एक नस्टा ग्रन्थ बनाया धन्य है इस बुद्धि को किसी चारपाक ने कहा है कि
त्रयोवेदस्यकर्त्तारो भण्डधूर्तनिशाचराः। "वेद के बनाने वाले भांड धूर्त निशाधर हैं "वही कहा। धत आपने किई ॥
जोशीजी ! ऋषि मुनि उलटे ग्रन्य नहीं बनाते थे। जैमि. मिसत्र उलटा नहीं। किन्तु उलटी पुस्तक आपने जरूर बनायी है जिसमें ज्योतिष की निन्दा बौद्धावतार की मिन्दा और रजखला होने के तीन वर्ष बाद कन्या का विवाह मौसेरे भाई बहिनों के विवाह का समर्थन इत्यादि सभी शास्त्रविरुद्ध बातें लिखी हैं वेद पुराण निकम्मे कहे हैं वही पुस्तक उलटी है ।।
(ज्यो० च० पृ. ४२ )-भृगुसंहिता की निन्दा लिखी है। आप फरमाते हैं कि भृगुसंहिता लिखने वाला बड़ा ही धत्तं होगा ॥ इत्यादि
(समीक्षा) ज्योतिष को दयानन्द सरस्वती जी नहीं मानते थे। पर भगसंहिता उन्हों ने भी मानी है सन् १८७०ई० में संस्कृत का एक विज्ञापन प्रमुकर पुस्तके मान्य, अमुकर मुझे अमान्य हैं। इस विषय में स्वामी दयानन्द ने छपाया था। उस में भगसंहिता मान्य पुस्तकों में लिखी थी । और यह भी लिखा था कि ज्यातिष के अन्यों में भगसंहिता सच्ची है, इस से तीन जन्म का हाल जाना जाता है। पर ह. मारे सनातनधर्मी जोशी जी तो स्वामी जी को भी मात दे
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